The plight of Shikshamitras: Who is responsible?: शिक्षामित्रों की दुर्दशा: जिम्मेदार कौन?

The plight of Shikshamitra:
उत्तर प्रदेश के लाखों प्रशिक्षित शिक्षामित्र आज जिस संकट और अनिश्चितता में हैं, उसके पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतने बड़े संघर्ष, शिक्षण का समर्पण और वर्षों की सेवा के बावजूद शिक्षामित्रों को न्याय और स्थायित्व क्यों नहीं मिल पा रहा है?
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अभ्यंतर विरोध और आपसी फूट: The plight of Shikshamitra
शिक्षामित्रों की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही है कि संगठन में एकजुटता की भारी कमी आ गई। जब कोई बड़ा मुद्दा उठता है तो कुछ लोग या गुट अपने निजी स्वार्थ, पद, या लाभ के लिए संगठन और साथी शिक्षामित्रों के साथ गद्दारी कर जाते हैं। अदालती लड़ाई, आंदोलन या सरकार के साथ संवाद में पूरी एकता नहीं दिखती, जिससे विरोधी पक्ष मजबूत हो जाता है।

प्रशासनिक और नीति पक्ष: The plight of Shikshamitra
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की नीतियों में बार-बार बदलाव, असहज नियम और कोर्ट के बार-बार फैसले भी बड़ी बाधाएँ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों के बाद शिक्षामित्रों को बार-बार अनिश्चितता का सामना करना पड़ा। राजनीतिक नेतृत्व ने शिक्षामित्रों के मुद्दे को चुनावी एजेंडा तो बनाया, लेकिन समस्या का स्थायी हल नहीं निकाला।
सामाजिक नजरिया और सम्मान
शिक्षामित्रों को पूर्ण शिक्षकों जैसा सम्मान और वेतन नहीं मिल पाने से समाज में भी उनकी स्थिति कमजोर बनी रही। कई बार मीडिया और सरकारी तंत्र ने भी उनकी भूमिका को महत्त्व नहीं दिया।
- जब अपनों में ही फूट और गद्दारी पैदा हो जाए, तो संगठन कमजोर हो जाता है।
- नीति और प्रशासनिक अस्थिरता ने शिक्षामित्रों की समस्याएँ बढ़ाईं।
- समाज, मीडिया, और राजनीति ने भी स्थायी समाधान की दिशा में गंभीरता नहीं दिखाई।
आज आवश्यकता है कि एकता, ईमानदारी और दूरदर्शी नेतृत्व के साथ शिक्षामित्र अपने अधिकारों के लिए मिलकर संघर्ष करें। असली जीत तभी संभव है जब हर साथी अपने हित से ऊपर सामूहिक अधिकारों को सर्वोपरि माने।
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