Dispute over promotion of regulated teachers, says adding their contractual service for promotion is against the rules: विनियमित शिक्षकों की पदोन्नति को लेकर रार, कहा, पदोन्नति के लिए इनकी संविदा अवधि की सेवा जोड़ना नियम विरुद्ध
Dispute over promotion of regulated teachers, says adding their contractual service for promotion is against the rules: विनियमित शिक्षकों की पदोन्नति को लेकर रार, कहा, पदोन्नति के लिए इनकी संविदा अवधि की सेवा जोड़ना नियम विरुद्ध

Dispute over promotion of regulated teachers:
राजकीय महाविद्यालयों में 2005 से 2008 के बीच संविदा पर नियुक्त और 2016 में विनियमित किए गए 290 शिक्षकों की पुरानी सेवा को जोड़ते हुए कैरियर एडवांसमेंट स्कीम (कैस) के तहत पदोन्नति का लाभ देने की तैयारी शुरू हो गई है। इस संबंध में शासन की ओर से 26 अगस्त और उच्च शिक्षा निदेशालय की तरफ से दो सितंबर को पत्र जारी किया गया है। जिसके बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से चयनित नियमित असिस्टेंट प्रोफेसरों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।
विरोध कर रहे शिक्षकों का तर्क है कि राजकीय महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए वैधानिक संस्था उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) है, जबकि संविदा शिक्षकों का चयन मात्र उच्च शिक्षा निदेशालय के स्तर से किया गया था। संविदा शिक्षकों के विनियमितीकरण के दौरान आरक्षण प्रणाली की अनदेखी की गई, जिसकी सघन जांच होनी चाहिए। विनियमितीकरण के पूर्व से कैस के सभी लाभ संविदा शिक्षकों को देना सरकार पर बड़ा अवैधानिक वित्तीय बोझ है।

Dispute over promotion of regulated teachers:
शिक्षकों का कहना है कि कैस पदोन्नति के लिए संविदा सेवा जोड़ना नियम विरुद्ध है क्योंकि यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार नियमित वेतनमान पर नियुक्ति तिथि को गिना जाना चाहिए। वहीं, संविदा शिक्षकों की जिस सेवा अवधि को जोड़ने के लिए सूचनाएं मांगी जा रही हैं उसमें उनका चयन निश्चित मानदेय पर हुआ था। उस दौरान उन्हें किसी भी प्रकार का वेतनमान या अवकाश अनुमन्य नहीं था। संविदा शिक्षकों को शुरू में मात्र छह हजार, फिर आठ हजार और फिर ₹21,600 निश्चित मानदेय मिला जबकि यूपीपीएससी से चयनित सहायक प्राध्यापकों को प्रारंभ से ही वेतनमान, ग्रेड-पे एवं अन्य भत्ते प्राप्त हुए। कैस के लिए नियमित सेवा अनिवार्य है जबकि संविदा शिक्षकों की नियुक्ति प्रत्येक वर्ष 15 दिन के सेवा विराम के साथ होती रही तथा सेवा-विराम की अवधि में वेतन भी नहीं मिला जिसका उल्लेख उनकी सेवा अभिलेख में है। इन नियमित असिस्टेंट प्रोफेसरों ने राज्यपाल को पत्र लिखने के साथ ही कानूनी लड़ाई की तैयारी भी शुरू कर दी है
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