Antrisha Yatra
Antrisha Yatra:- Bharat me antrisha karyakram ki suruaat

भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत:Antrisha Yatra
Antrisha Yatra:भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी, और इसे विक्रम साराभाई के नेतृत्व में मजबूत आधार मिला। 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना हुई, और 1963 में तिरुवनंतपुरम के थुंबा में पहले प्रक्षेपण केंद्र की स्थापना की गई, जहां Nike-Apache रॉकेट का सफल प्रक्षेपण हुआ था। इस दौरान, भारत ने साउंडिंग रॉकेट्स एवं उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में शुरुआत की।
भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान का विकास:Antrisha Yatra
- 1969: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना हुई, जिसने भारत को स्वदेशी रूप से उपग्रह बनाने और प्रक्षेपित करने में सक्षम बनाया।
- 1975: भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, लॉन्च किया गया, जिसने भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर प्रदान किया।
- 1980 के दशक: भारत ने INSAT श्रृंखला और IRS उपग्रहों के माध्यम से दूरसंचार और पृथ्वी अवलोकन में नई उन्नतियों को हासिल किया।
- 2008: भारत का पहला चंद्र मिशन, चंद्रयान-1, भेजा गया, जिसने चंद्रमा पर पानी के संकेत दिए।
- 2013: मंगलयान (Mars Orbiter Mission), भारत का पहला मार्स ऑर्बिटर, मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचने वाला पहला एशियाई देश बना।
- 2023: चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग, भारत की सफलताओं में एक और ऐतिहासिक मील का पत्थर।
वर्तमान और भविष्य के मिशन:Antrisha Yatra
Antrisha Yatra:भारत का प्रमुख लक्ष्य अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को लगातार विकसित करना है, जिसमें आदित्य-L1 सूर्य की सतह का अध्ययन करने वाला पहला मिशन है, जो 2023 में प्रक्षेपित किया गया था। इसके अलावा, भारत मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान (गगनयान) पर काम कर रहा है, जिसका पहला मानव मिशन 2024-26 के बीच प्रस्तावित है।

प्रमुख शुरुआती वैज्ञानिकों और उनकी भूमिकाएँ
Antrisha Yatra:भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख शुरुआती वैज्ञानिकों में सबसे महत्वपूर्ण नाम डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई का है, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का पितामह माना जाता है। उन्होंने 1960 के दशक में भारत के अंतरिक्ष प्रयासों की नींव रखी और 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की। साराभाई ने थुंबा में पहला रॉकेट लॉन्च कर देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने अंतरिक्ष तकनीक को राष्ट्र के विकास के लिए उपयोगी बनाने पर जोर दिया, खासकर कृषि, स्वास्थ्य सेवा और दूरसंचार में। साथ ही उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की स्थापना की और भारत में कई विज्ञान संस्थानों के विकास में मदद की।
इसके अतिरिक्त, डॉ. होमी भाभा का भी अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत में बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में अंतरिक्ष अनुसंधान को रखा और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) के गठन में मदद की।
प्रमुख शुरुआती वैज्ञानिक और उनकी भूमिकाएँ
| वैज्ञानिक का नाम | भूमिका और योगदान |
|---|---|
| डॉ. विक्रम साराभाई | भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक, ISRO के संस्थापक, थुंबा रॉकेट लॉन्चिंग केंद्र के संस्थापक, पीआरएल के संस्थापक, विज्ञान के विकास के प्रवर्तक। |
| डॉ. होमी भाभा | परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक, INCOSPAR के गठन में मुख्य भूमिका, भारतीय परमाणु और अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक। |
1950-1970 के बीच भारतीय वैज्ञानिक नीतियाँ:Antrisha Yatra
Antrisha Yatra:1950 से 1970 के बीच भारत में वैज्ञानिक नीतियाँ और कार्यक्रम देश के विकास के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आधारभूत ढांचे को स्थापित करने में केंद्रित थीं। इस अवधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1958 की पहली विज्ञान नीति
Antrisha Yatra:यह भारत की पहली राष्ट्रीय विज्ञान नीति थी, जिसकी शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और वैज्ञानिक होमी भाभा के नेतृत्व में हुई। इस नीति का उद्देश्य था विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक बनाना और इसे शिक्षा, कृषि, उद्योग, रक्षा आदि क्षेत्रों में लागू करना। इसे 4 मार्च 1958 को संसद में प्रस्तुत किया गया और यह नीति विज्ञान को व्यापक रूप से उद्योग और समाज तक पहुँचाने पर जोर देती थी।
बहु-क्षेत्रीय वैज्ञानिक विकास
- कृषि में हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसने खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया और भारत को खाद्यान्न उत्पादन में विश्व के शीर्ष देशों में स्थान दिलाया।
- परमाणु ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भी अनुसंधान को बढ़ावा मिला।
संस्थागत विकास
- वैज्ञानिक अनुसंधान विभाग (Department of Scientific Research) तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने अनुसंधान को सुव्यवस्थित किया।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) की स्थापना से उच्चस्तरीय तकनीकी शिक्षा का प्रसार हुआ।
- अंतरिक्ष अनुसंधान की नींव 1962 में INCOSPAR के गठन से पड़ी, जो बाद में ISRO का रूप ले चुकी थी।
नीति के प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सुधार और विस्तार।
- वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय समर्थन।
- विज्ञान को आम जनता तक पहुँचाना और स्वदेशी तकनीकी क्षमताओं का विकास।
- शिक्षा प्रणाली में विज्ञान को प्राथमिकता देना।
इस तरह, 1950-1970 के वर्षों में भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मजबूत नींव रखी, जो बाद के दशकों में देश के वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नयन की आधारशिला बनी।
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