अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है। जानिए 2025 में अरावली की ताज़ा स्थिति, पर्यावरणीय महत्व, खतरे और संरक्षण से जुड़ी पूरी जानकारी।
Aravalli Mountain Range: Today’s Latest Information: अरावली पर्वतमाला: आज की ताज़ा जानकारी

अरावली पर्वतमाला: आज की ताज़ा जानकारी : Aravalli Mountain
अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह न केवल भूगर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण, जलवायु, जैव विविधता और मानव जीवन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। आज जब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अंधाधुंध शहरीकरण जैसी चुनौतियाँ सामने हैं, तब अरावली की भूमिका और भी अहम हो जाती है। इस पोस्ट में हम अरावली से जुड़ी इतिहास, भूगोल, पर्यावरणीय महत्व, वर्तमान हालात, सरकारी प्रयास और भविष्य की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अरावली पर्वतमाला का परिचय: Aravalli Mountain
अरावली पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम भारत में फैली हुई है। इसका विस्तार लगभग 692 किलोमीटर में है। यह पर्वतमाला **गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली होते हुए समाप्त होती है।
अरावली को दुनिया की सबसे पुरानी फोल्ड पर्वतमालाओं में गिना जाता है, जिसकी आयु लगभग 150–250 करोड़ वर्ष मानी जाती है। यही कारण है कि आज यह ऊँची चोटियों की बजाय घिसी-पिटी, कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों के रूप में दिखाई देती है।
🔶 H1: अरावली पर्वतमाला क्या है? (Aravali Parvatmala in Hindi)
अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला मानी जाती है। यह पर्वतमाला लगभग 692 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसका विस्तार गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा होते हुए दिल्ली तक जाता है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार अरावली की आयु लगभग 150 से 250 करोड़ वर्ष है, जो इसे दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में शामिल करती है।
🔶 H2: अरावली पर्वतमाला की प्रमुख विशेषताएँ: Aravalli Mountain
- लंबाई: लगभग 692 किमी
- औसत ऊँचाई: 300–900 मीटर
- सबसे ऊँचा शिखर: गुरु शिखर
- प्रमुख हिल स्टेशन: माउंट आबू
🔶 H2: अरावली का पर्यावरणीय महत्व
🔹 H3: थार मरुस्थल को रोकने में भूमिका
अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है। यदि अरावली न हो, तो राजस्थान का रेगिस्तान हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैल सकता है।
🔹 H3: भूजल संरक्षण
अरावली की चट्टानें वर्षा जल को रोककर ज़मीन के अंदर भेजती हैं, जिससे भूजल स्तर बना रहता है। दिल्ली-एनसीआर का बड़ा हिस्सा अरावली पर निर्भर है।
🔹 H3: जलवायु संतुलन
अरावली गर्म हवाओं को रोकने और तापमान संतुलन में मदद करती है।
🔶 H2: अरावली की जैव विविधता
अरावली क्षेत्र में कई प्रकार के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं:
- धौक, खैर, नीम, बबूल
- तेंदुआ, नीलगाय, सियार
- मोर, चील, उल्लू
यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
🔶 H2: अरावली की वर्तमान स्थिति (2025)
आज अरावली गंभीर संकट में है:
- ❌ अवैध खनन
- ❌ जंगलों की कटाई
- ❌ तेज़ शहरीकरण
- ❌ रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स
इन कारणों से अरावली का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
🔶 H2: सरकारी और न्यायिक प्रयास
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई क्षेत्रों में खनन पर रोक
- राज्य सरकारों द्वारा अरावली संरक्षण योजनाएँ
- दिल्ली में ग्रीन बेल्ट और वृक्षारोपण अभियान
हालाँकि ज़मीनी स्तर पर अभी और सख्ती की ज़रूरत है।
🔶 H2: अरावली बचाने के उपाय
- अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई
- बड़े स्तर पर वृक्षारोपण
- स्थानीय लोगों की भागीदारी
- पर्यावरण शिक्षा
- ग्रीन ज़ोन को कानूनी सुरक्षा

भौगोलिक विशेषताएँ: Aravalli Mountain
- अरावली की औसत ऊँचाई: 300–900 मीटर
- सबसे ऊँचा शिखर: गुरु शिखर (लगभग 1722 मीटर)
- प्रमुख क्षेत्र: माउंट आबू, उदयपुर, अलवर, अजमेर



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अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल और उपजाऊ मैदानों के बीच एक प्राकृतिक दीवार का काम करती है।
इतिहास और पौराणिक महत्व: Aravalli Mountain
प्राचीन ग्रंथों और इतिहास में अरावली का उल्लेख मिलता है। यह क्षेत्र मौर्य, गुप्त, प्रतिहार और राजपूत काल में रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। कई दुर्ग और बस्तियाँ अरावली की पहाड़ियों में विकसित हुईं, जो आज भी राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान हैं।
पर्यावरण में अरावली की भूमिका
1. मरुस्थल को रोकने वाली ढाल
अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल को पूर्व की ओर फैलने से रोकती है। यदि अरावली न हो, तो राजस्थान का मरुस्थल दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैल सकता है।
2. भूजल रिचार्ज
अरावली की चट्टानें वर्षा जल को रोककर भूजल स्तर बढ़ाने में मदद करती हैं। दिल्ली–एनसीआर और हरियाणा के कई क्षेत्रों का भूजल सीधे अरावली पर निर्भर है।
3. जलवायु संतुलन
यह पर्वतमाला गर्म हवाओं की तीव्रता को कम करती है और वर्षा चक्र को संतुलित रखने में सहायक है।
वन्यजीव और जैव विविधता
अरावली क्षेत्र में अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव-जंतु पाए जाते हैं:
- पेड़: धौक, खैर, नीम, बबूल
- जीव: तेंदुआ, सियार, नीलगाय, लोमड़ी
- पक्षी: मोर, चील, उल्लू
ये वन जैव विविधता के हॉटस्पॉट माने जाते हैं।
अरावली और दिल्ली-एनसीआर
दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण में अरावली की बड़ी भूमिका है। अरावली के जंगल:
- धूल और प्रदूषक कणों को रोकते हैं
- ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाते हैं
- तापमान को संतुलित रखते हैं
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ (2025)
आज अरावली कई गंभीर समस्याओं से जूझ रही है:
🔴 अवैध खनन
राजस्थान और हरियाणा में लंबे समय से पत्थर और खनिजों का अवैध खनन अरावली को नुकसान पहुँचा रहा है।
🔴 शहरीकरण
दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट और सड़कों के निर्माण से अरावली का बड़ा हिस्सा नष्ट हुआ है।
🔴 वन कटाई
जंगलों की अंधाधुंध कटाई से जैव विविधता पर खतरा बढ़ गया है।

सरकारी और न्यायिक प्रयास: Aravalli Mountain
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली क्षेत्र में खनन पर कई बार रोक
- हरियाणा और राजस्थान में अरावली संरक्षण योजनाएँ
- दिल्ली में ग्रीन वॉल और री-फॉरेस्टेशन प्रोजेक्ट्स
हालांकि, ज़मीनी स्तर पर इनका प्रभाव अभी भी सीमित है।
अरावली बचाने के लिए क्या ज़रूरी है?
- सख्त कानून और उनका पालन
- अवैध खनन पर पूर्ण प्रतिबंध
- बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण
- स्थानीय लोगों की भागीदारी
- पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता
भविष्य की चेतावनी: Aravalli Mountain
अगर अरावली पर्वतमाला का संरक्षण नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में:
- दिल्ली-एनसीआर में भीषण जल संकट
- प्रदूषण और तापमान में तेज़ बढ़ोतरी
- थार मरुस्थल का विस्तार
- जैव विविधता का भारी नुकसान
निष्कर्ष: Aravalli Mountain
अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ों की एक श्रृंखला नहीं, बल्कि भारत की पर्यावरणीय रीढ़ है। आज की ताज़ा स्थिति यह बताती है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका नुकसान आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। अरावली को बचाना मतलब पानी, हवा, जंगल और जीवन को बचाना।
👉 अरावली बचेगी, तभी भविष्य बचेगा।
- सुरक्षा
🔶 H2: निष्कर्ष
अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं बल्कि भारत की पर्यावरणीय ढाल है। यदि इसे नहीं बचाया गया, तो आने वाले समय में जल संकट, प्रदूषण और जलवायु असंतुलन गंभीर रूप ले सकता है।
👉 अरावली बचेगी, तभी भारत का पर्यावरण बचेगा।
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