योग क्या है |योग के प्रकार |योग के कितने तरीके होते है |योग से कैसे निरोग रहे |योग कब सुरु हुवा |योग के लाभ|log के फायदे |योग कहा से सुरुआत हुवा |योगा शरीर के कितना फायदेमंद है
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योग क्या है? – What is Yoga in Hindi?
योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जु अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है।
Table of Contents
अर्धचक्रासन
अर्ध शब्द का अर्थ है आधा तथा चक्र का अर्थ है पहिया। इस आसन में चूंकि शरीर आधे पहिए की आकृति जैसा बनता है, इसलिए इस आसन को अर्ध चक्रासन कहते हैं।
अभ्यास विधि
- दोनों हाथों की सभी अंगुलियों से कमर को पीछे की ओर से पकड़ें। सभी अंगुलियां उर्ध्वमुखी और अधोमुखी स्थिति में हों।
- सिर को पीछे की ओर झुकाते हुए ग्रीवा की मांसपेशियों को खींचना चाहिए।
- श्वास लेते चाहिए।कटि भाग से पीछे की ओर झुकना चाहिए श्वास को बाहर छोड़ते हुए शिथिल होना चाहिए।
- इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रुकें तथा सामान्य रूप से श्वास लेते रहें।
- श्वास को अंदर खींचते हुए धीरे-धीरे प्रारम्भिक अवस्था में वापस लौटें।
लाभ
- अर्ध चक्रासन के अभ्यास से मेरुदण्ड लचीला बनता है तथा मेरुदण्ड से सम्बंधित नाड़ियां मजबूत बनती हैं।
- ग्रीवा की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है तथा श्वसन क्षमता बढ़ाता है।
- सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस में यह लाभकारी है।
सावधानियां
- यदि आपको चक्कर आता हो तो इस आसन का अभ्यास करने से बचें।
- उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति अभ्यास करते समय सावधानी से पीछे की ओर झुकें।
त्रिकोणासन
त्रिकोणासन शब्द का अर्थ त्रि अर्थात तीन कोणों वाला आसन है। चूंकि आसन के अभ्यास के समय शरीर एवं पैरों से बनी आकृति तीन भुजाओं के सदृश्य दिखाई देती है, इसीलिए इस अभ्यास को त्रिकोणासन कहते हैं।
अभ्यास विधि
- त्रिकोणासन के अभ्यास के समय दोनों पैरों को फैलाकर आराम से खड़ा होना चाहिए।
- दोनों हाथों को आकाश के समानातर होने तक धीरे-धीरे उठाना चाहिए।
- श्वास को शरीर से बाहर छाड़ते हुए धीरे-धीरे दाई तरफ झुकना चाहिए। झुकने के बाद दायां हाथ दाएं पैर के ठीक पीछे की ओर रखना चाहिए।
- बायें हाथ को सीधे ऊपर की ओर रखते हुए दायें हाथ की सीध में लाना चाहिए।
- तत्पश्चात बाईं हथेली को आगे की ओर लाना चाहिए।
- सिर को घुमाते हुए बाएं हाथ की बीच वाली अंगुली को देखना चाहिए।
- सामान्य श्वास लेते हुए इस आसन में 10-30 सकेंड तक रुकना चाहिए।
- श्वास को शरीर के अंदर लेते हुए प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाएं।
- इस आसन को दूसरी ओर से भी करना चाहिए।
लाभ
- पैर के तलवों से सम्बन्धित विसंगतियों से बचाता है।
- पिण्डिका, जांघों और कटि भाग की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।
- मेरुदण्ड को लचीला बनाता है तथा फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है।
सावधानियां
- स्लिप्ड डिस्क, साइटिका एवं उदर में किसी प्रकार की सर्जरी होने के बाद इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- शरीर की कार्य क्षमता तथा सीमा से परे जाकर न करें तथा शरीर को सीमा से अधिक न खींचें।
- अभ्यास करते समय यदि आप जमीन को न छू सकें तो घुटनों को छूने का प्रयास करें।
ख. बैठकर किए जाने वाले आसन
भद्रासन
भद्र शब्द का अर्थ दृढ़, सज्जन या सौभाग्यशाली होता है।
शारीरिक स्थिति :बैठी हुई स्थिति (विश्रामासन)
अभ्यास विधि
- दोनों पैरों को सामने की ओर सीधा फैलाकर बैठें।
- दोनों हाथों को नितंब के पास रखें।यह स्थिति दंडासन कहलाती है।
- अब दोनों पैरों के तलवों को पास-पास ले आएं।
- श्वास बाहर छोड़ते हुए पैरों की अंगुलियों को हाथों से पकड़ कर ढक दें।
- एड़ियों को मूलाधार के जितना नजदीक हो सके ले आएं।
- यदि पैरों की एडियां जांघों को नहीं छुपा रही हैं या पृथ्वी से नहीं लगी हुई हैं तो सहारे के लिए घुटनों के नीचे एक मुलायम कुशन रखना चाहिए। यह अभ्यास की अंतिम अवस्था है।
- इस अवस्था में कुछ समय तक रहना चाहिए।
लाभ
- भद्रासन का अभ्यास शरीर को दृढ़ रखता है एवं मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है।
- घुटनों और नितंब के जोड़ों को स्वस्थ रखता है।
- घुटनों का दर्द कम करने में मदद करता है।
- उदर के अंगों को क्रियाशील करता करता और उदर में होने वाली किसी भी तरह की त्रुटि / खिंचाव को सामान्य करता है
- महिलाओं को मासिक धर्म के समय अक्सर होने वाले पेट दर्द से मुक्तिप्रदान करता है।
सावधानियां
पुरानी तथा अत्यधिक पीड़ा देने वाले आर्थराइटिस और साइटिका से ग्रसित व्यक्ति को इस अभ्यास से बचना चाहिए।
वज्रासन / वीरासन
इस आसन को ध्यान मुद्रा में किया जाना चाहिए। जब आप ध्यान मुद्रा में इस आसन का अभ्यास करें तब अंतिम अवस्था में आंखें बंद कर लें।
अभ्यास विधि
- दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाइए, हाथ आपके शरीर के बगल में हों और आपकी हथेलियां जमीन पर हों, ऊंगलियां सामने की दिशा की ओर इशारा करती हों।
- दाहिने र को घुटने से मोड़ लें पंजों को नितंब के नीचे दबाकर बैठ जाएं।
- इसी तरह बायें पैर को भी घुटने से मोड़ते हुए ऐसे बैठें कि पंजे बायें नितंब के नीचे हो
- नितंब एड़ियों के ऊपर होने चाहिए।
- बायें हाथ को क्रमशः बायें और दायें हाथ को दाहिने घुटने पर रखें।
- मेरुदंड को सीधा रखें और सामने की ओर देखते हुए आंखें बंद रखें।
- पूर्ववत् स्थिति में आने के लिए दाहिनी ओर थोड़ा सा झुककर अपने बायें पैर को निकालें और उसे सीधा करें।
- इसी तरह अपने दाहिने पैर को निकालकर उसे सीधा कर लें।
लाभ
- इस आसन से जांध और पिंडली की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
- यह आसन पाचन शक्ति बढ़ाने में सहायक होता है।
- यह मेरुदंड को सुदृढ़ता प्रदान करता है और उसे सीधा रखने में सहायता
प्रदान करता है।
सावधानियां
- बवासीर के मरीजों को इस आसन से परहेज करना चाहिए।
- घुटने दर्द और एड़ियों के चोट से ग्रसित व्यक्तियों को इस आसन से परहेज करना चाहिए।
अर्ध उष्ट्रासन
शारीरिक स्थिति: बैठी हुई स्थिति में (विश्रामासन )
उष्ट्र शब्द का अर्थ ऊंट है। इस आसन के अभ्यास की अंतिम अवस्था ऊंट के कूबड़ या उभार की स्थिति जैसी बनती है। इस आसन के अभ्यास में केवल प्रथम चरण (अर्ध उष्ट्रकी स्थिति ) का ही अभ्यास किया जाता है।
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम विश्रामासन में बैठ जाएं।
- पुनः दंडासन की स्थिति में आ जाएं।
- पैरों को मोड़ते हुए एड़ियों पर बैठ जाएं।
- जांघों को सटाकर रखें एवं अंगूठे एक-दूसरे से सटे हो।
- हाथों को घुटनों पर रखें।
- सिर एवं पीठ को बिना झुकाए सीधा रखें।
- यह स्थिति वज्रासन कहलाती है।
- घुटनों पर खड़े हो जाएं।
- हाथों को कमर पर इस प्रकार रखें कि अंगुलियां जमीन की ओर हों।
- कोहनियों एवं कंधों को समानांतर रखें।
- अब सिर को पीछे की तरफ झुकाते हुए ग्रीवा की मांसपेशियों को खींचें।
- श्वास अंदर खींचें एवं धड़ को जितना संभव हो सके झुकाएं।
श्वास बाहर छोड़ते हुए शिथिल हो जाना चाहिए। - पुनः जांघों को जमीन से लंबवत रखें।
- सामान्य रूप से श्वास लेते हुए इस मुद्रा में 10-30 सेकंड तक रुकें।
- श्वास अंदर खींचते हुए सामान्य मुद्रा में वापस लौटते हुए वज्रासन में बैठ जाएं।
- पुनः विश्रामासन में शिथिल जाना चाहिए।
लाभ
- इस योगाभ्यास से पीठ और गर्दन की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
- कब्ज एवं पीठ दर्द से मुक्ति मिलती है।
- सिर एवं हृदय क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ाता है।
- यह योगाभ्यास हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है, किंतु इसका अभ्यास सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए।
सावधानियां
हर्निया एवं उदर संबंधी गंम्भीर व्याधि तथा आर्थराइटिस, चक्कर आना, स्त्रियों के लिए गर्भावस्था समय में इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
उष्ट्रासन (ऊंट जैसी शारीरिक स्थिति)
इस आसन के अभ्यास की अवस्था में शारीरिक स्थिति ऊंट (उष्ट्र) के समान हो जाती है। इसीलिए इसका नाम उष्ट्र आसन है।
अभ्यास विधि
- घुटनों को जमीन पर टिकाते हुए अपने दोनों पैरों के जांघ और पंजों को आपस में मिला लीजिए, पंजों को बाहर की तरफ रखते हुए जमीन पर फैला दीजिए।
- घुटनों और पंजों के बीच एक फुट की दूरी रखते हुए घुटनों के बल खड़े हो जाएं।
- श्वास लेते हुए पीछे की ओर झुकें।
- इस बात का ध्यान रखें कि पीछे झुकते समय गर्दन को झटका न लगे।
- पीछे की ओर झुकें और धीरे-धीरे दाहिने हाथ से दाहिनी एड़ी और बायें हाथ से बाई एड़ी को पकड़ने का प्रयास करें।
- अंतिम स्थिति में जांध को जमीन पर उर्ध्वाकार (लंबवत्) रखते हुए सिर को हल्का सा पीछे की ओर खींचकर रखें।
- यथासंभव पूरे शरीर का भार अपनी भुजाओं और पैरों पर होना चाहिए।
- इसका अभ्यास सर्वांगासन के बाद करना चाहिए इस मुद्रा में उचित लाभ होता है।
लाभ
- उष्ट्रासन दृष्टिदोष में अत्यंत लाभदायक है।
- यह पीठ और गले के दर्द से आराम दिलाता है।
- यह उदर और नितंब की चर्बी को कम करने में सहायक है।
- पाचन क्रिया संबंधी समस्याओं के लिए यह अत्यंत लाभदायक है।
सावधानियां
उच्च रक्तचात, हृदय रोगी, हर्निया के मरीजों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
शशांकासन
शशांक शब्द का अर्थ है खरगोश। चूंकि इस आसन के अभ्यास में शरीर की आकृति खरगोश जैसी बनती है इसलिए इसे शशांकासन कहते है।
शारीरिक स्थिति :वज्रासन
अभ्यास विधि
- सर्व प्रथम वज्रासन में बैठना चाहिए।
- दोनों पैरों के घुटनों को एक दूसरे से दूर फैलाएं।
- इस प्रकार बैठें कि पैरों के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों।
- दोनों हथेलियों को घुटनों के बीच जमीन पर रखें।
- श्वास को बाहर छोड़ते हुए दोनों हथेलियों को सामने की ओर स्वयं से दूर ले जाएं।
- आगे की ओर झुकते हुए ढुड्डी को ज़मीन पर रखें।
- दोनों भुजाओं को समानांतर रखें।
- सामने की ओर देखें और इस स्थिति को बनाए रखें।
- श्वास को अंदर खींचते हुए पीछे की ओर आ जाएं।
- श्वास को बाहर छोड़ते हुए वज्रासन में वापस लौट आएं।
- पैरों को पीछे खींचकर विश्रामासन में वापस आ जाएं।
लाभ
- शशांकासन का अभ्यास तनाव, क्रोध आदि को कम करने में सहायक है।
- यह जनन अंग संबंधी व्याधि एवं कब्ज मुक्ति दिलाता है एवं पाचन क्रिया
- संबंधी व्याधि व पीठ दर्द से छुटकारा दिलाता है।
सावधानियां
- अधिक पीठ दर्द में इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
- घुटनों से संबंधित ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित व्यक्तियों को इस
अभ्यास को सावधानी पूर्वक करना चाहिए अथवा वज्रासन से बचना चाहिए। - उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों को इस आसन परहेज करना चाहिए।
उत्तानमंडूकासन (उर्ध्व दिशा में मेढ़क जैसा)
उत्तान का अर्थ उर्ध्व और मंडूक का अर्थ मेढ़क है। इस आसन में मेढ़क जैसी स्थिति में उर्ध्वमुखी हुआ जाता है। इसी कारण इस आसन का नाम उत्तानमंडूकासन पड़ा। उत्तानमंडूकासन में कोहनियों के सहारे सिर को थामा जाता है।
अभ्यास विधि
- वजासन मुद्रा में बैठें।
- अंगुठों को सटाते हुए दोनों घुटनाओं को जितना अधिक हो सके फैलाएं।
- अपनी दाई हथेली को उठाएं, उसे मोड़ें और उसे पीछे ले जाकर दाहिने कंधें
से ऊपर उठाएं। इसके बाद हथेली को बाईं तरफ के कंधे के नीचे लाएं - इसी क्रिया को बाईं हथेली का उपयोग करते हुए दोहराएं और अपनी हथेली
को ऊपर ले जाकर बायें कंधे के नीचे ले आएं। - कुछ देर तक इसी मुद्रा में रुकें। उसके बाद धीरे-धीरे बायें कंधे और फिर दायें कंधे को वापस ले आएं। अपने घुटनों को मिलाकर पूर्ववत स्थिति में आ जाएं।
लाभ
- यह आसन पीठ दर्द और ग्रीवा की तकलीफ से छुटकारा दिलाता है।
- यह आसन शरीर के मध्यपट के लिए लाभदायक है। यह फेफड़े की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
सावधानियां
घुटनों व जोड़ों के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों को इस आसन से परहेज करना चाहिए।
मरीच्यासन / वक्रासन
वक्र शब्द का अर्थ घुमाव अथवा ऐंठन है। इस आसन के अभ्यास में मेरुदण्ड की अस्थि को घुमाते हैं, जिससे शरीर की आकृति वक्र हो जाती है जिसके कारण इसे वक्रासन कहते है। इसके अभ्यास से शरीर में कार्य करने की क्षमता को नया जीवन मिलता है।
शारीरिक स्थिति :दंडासन
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम दाएं पैर को मोड़ते हुए उसके पंजे को बाएं घुटने के बगल में रखें।
- श्वास को बाहर छोड़ते हुए शरीर को दाई तरफ घुमाएं।
- बाएं हाथ को दाएं घुटने के पास लाएं और दाएं पैर के अंगूठे को पकड़ लें अथवा हथेली को दाएं पैर के पास रखें।
- दाएं हाथ को पीछे ले जाएं और हथेली को जमीन पर रखें, जब तक कि पीठ लंबवत न हो जाए।
- इस स्थिति में 10-30 सेंकड तक रहें।
- सामान्य ढंग से श्वास-प्रश्वास लेते रहें और शरीर को शिथिल रखें।
- श्वास को बाहर छोड़ते हुए अपने हाथ हटा लें और शिथिल हो जाएं।
- इस अभ्यास क्रम को दूसरी तरफ से भी दोहराएं।
लाभ
- मेरुदण्ड की अस्थि में लचीलापन बढ़ाता है।
- कब्ज एवं अग्निमांद्य (डिस्पैप्सिया) को दूर करने में सहायता प्रदान करता है।
- पैंक्रियाज की शक्ति बढ़ाता है एवं मधुमेह के प्रबंधन में सहायता प्रदान करता है।
सावधानियां
अधिक पीठ दर्द में और वर्टिब्रल व डिस्क डिस्ऑर्डर की स्थिति में इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए। उदर की सर्जरी के बाद एवं मासिक धर्म के दिनों में भी इस आसन को नहीं करना चाहिए।
(ग )उदर के बल लेटकर किए जाने वाले आसन
मकरासन
संस्कृत में मकर शब्द का अर्थ होता मगर या घड़ियाल । इस आसन में शरीर की स्थिति मगर की आकृति के समान हो जाती है, इसलिए इसे मकरासन कहा जाता है।
स्थिति: अधोमुख लेटकर शिथिल स्थिति
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम उदर के बल लेट जाएं।
- पैरों को एक-दूसरे से दूर फैलाकर, पंजों को बाहर की ओर रखें
- दोनों हाथों को मोड़ते हुए बाएं हाथ पर दायां ह रखें।
- तत्पश्चात् ललाट को अपने हाथों पर रखें। आंखें धीरे-धीरे बंद करें। यह स्थिति मकरासन कहलाती है।
- सभी प्रकार के आसनों के पश्चात् शिथिलीकरण के लिए इस आसन का अभ्यास किया जाता है।
लाभ
- कटि प्रदेश के निचले भाग के लिए लाभदायक है।
- पीठ संबंधी समस्याओं को दूर करने में उपयोगी है।
- अस्थि संबंधी सभी व्याधियों को दूर करने में उपयोगी है।
- तनाव व चिंता से संबंधित समस्याओं के नियंत्रण में लाभदायक है।
सावधानियां
निम्न रक्तचाप, हृदय संबंधी समस्याओं से ग्रसित व्यक्तियों को तथा गर्भावस्था में इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
भुजंगासन
भुजंग शब्द का अर्थ सांप, सर्प व नाग है। इस आसन में शरीर की आकृति सांप के फन की तरह ऊपर उठती है जिसके कारण इस आसन को भुजंगासन कहते हैं।
शारीरिक स्थिति: मकरासन
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम पेट के बल लेट जाएं और अपने दोनों हाथों पर सिर टिकाते हुए शरीर को शिथिल रखें।
- अब अपने दोनों पैरों को आपस मिला लें।
- हाथों को खींचकर रखते हुए ललाटको जमीन पर टिका रहने दें।
- अब हाथों को शरीर के ठीक बगल में ऐसा रखें कि हथेलियां और कोहनियां जमीन पर टिके रहें।
- धीरे-धीरे श्वास अंदर खींचते हुए ठुड्डी और नाभि क्षेत्र तक शरीर को ऊपर उठाएं।
- कुछ समय तक इस स्थिति से रहें।
- इस अभ्यास को सरल भुजंगासन कहा जाता है।
- पुनः वापस लौटते हुए ललाट को जमीन पर टिकाएं।
- हथेलियों को वक्ष के बगल में रखें और कोहनियां ऊपर की ओर उठी हुई होनी चाहिए
- धीरे-धीरे श्वास को भीतर खींचते हुए ठुड्डी एवं नागि क्षेत्र तक के शरीर को ऊपर उठाए रखें।
इस अभ्यास को भुजंगासन कहा जाता है।
पुनः श्वास को बाहर छोड़ते हुए ललाट को जमीन पर शिथिल होने दें और हथेलियों के ऊपर सिर तथा पैर को फैलाकर शरीर को शिथिल करें।
लाभ
- तनाव प्रबंधन के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है।
- यह उदर के अतिरिक्त वसा को घटाता है तथा कब्जियत दूर करता है।
- पीठ दर्द और श्वास नली से संबंधित समस्याओं को दूर करता है।
सावधानियां
- जिन लोगों की उदर संबंधी सर्जरी हुई हैं, उन्हें 2-3 महीने तक इस आसन को नहीं करना चाहिए।
- जो लोग हर्निया, अल्सर से पीड़ित हों, उन्हें आसन अभ्या करना चाहिए।
- पैरों को उतना तानकर (दृढ़) रखें कि कटि क्षेत्र के मेरुदण्ड में कोई भार या तनाव न हो ।
शलभासन
शलभ शब्द का अर्थ टिड्डी होता है, जो एक प्रकार का कीडा होता है।
स्थिति :मकरासन
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम मकरासन की स्थिति में लेट जाएं।
- ठुड्डी को पृथ्वी पर टिकाकर दोनों हाथों को शरीर के बगल में रख लें। ध्यान रहे कि हथेलियां ऊपर की ओर होनी चाहिए।
- श्वास अंदर खींचें, घुटनों को नोड़े बिना पैरों को जमीन से जितना हो सके, ऊपर उठाएं।
- हाथों को इस तरह बढ़ाएं कि शरीर जमीन से आसानी से ऊपर उठ सके।
- इस स्थिति में 10-20 सेकंड तक रहें और सामान्य रूप से श्वास लेते रहें।
- श्वास बाहर छोड़ते हुए पैरों को जमीन पर वापस ले आएं।
- कुछ समय के लिए मकरासन की स्थिति में लेटे रहें।
ध्यातव्य
अपनी स्थिति को ठीक प्रकार से बनाने के लिए घुटनों की चक्की (नी कैप) को रोककर नितंबों को दबाकर रखना चाहिए। यह आसन भुजंगासन के बाद करने पर अधिक लाभदायक होता है।
लाभ
- साइटिका एवं पीठ के निचले हिस्से के पीड़ा-निवारण में सहायता प्रदान करता है।
- नितंबों की मांसपेशियों एवं वृक्क प्रदेश को सुगठित बनाता है।
- जांघों एवं नितंबों पर एकत्रित अतिरिक्त वसा को कम करता है; शरीर के वजन को नियंत्रित बनाए रखने में यह आसन उपयोगी है।
- उदर के अंगों को लाभ पहुंचाता है, पाचन में सहायता करता है।
सावधानियां
- हृदय रोगियों को इस आसन का अभ्यास करने से बचना चाहिए।
- पीठ के निचले हिस्से में अधिक दर्द होने पर सावधानी पूर्वक अभ्यास करना चाहिए।
- उच्च रक्तचाप, पेप्टिक अल्सर एवं हर्निया रोग से पीडित व्यक्ति को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।
(घ ) पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसन
सेतुबंधासन
सेतुबंध शब्द का अर्थ सेतु का निर्माण है। इस आसन में शरीर की आकृति एक सेतु की अवस्था में रहती है, इसलिए इसे यह नाम दिया गया है। इसे कटुस्पादासन भी कहा जाता है।
अभ्यास विधि
- दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ते हुए एड़ियों को नितंबों के पास लाएं।
- हाथों से पैर के टखनों को मजबूती से पकड़े और घुटने एवं पैरों को एक सीध में रखें।
- श्वास अंदर खींचते हुए धीरे-धीरे अपने नितंब और धड़ को ऊपर की ओर उठाएं ।
- इस अवस्था में 10-30 सेकंड तक रहें, इस दौरान सामान्य श्वास लेते रहना चाहिए।
- श्वास बाहर छोड़ते हुए धीरे-धीरे मूल अवस्था में वापस आएं और शवासन में लेटकर शरीर को शिथिल छोड़ दें।
ध्यातव्य
- अंतिम अवस्था में कंधे और सिर जमीन से लगे होने चाहिए।
- अंतिम अवस्था में यदि जरूरत हो तो आप अपनी कमर पर हाथ रखकर अपने शरीर को सहारा दे सकते हैं।
लाभ
- अवसाद एवं चिंता से मुक्त करता है। कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।
- उदर के अंगों में कसावट लाता है। पाचन क्षमता बढ़ाता है और कब्ज से छुटकारा दिलाता है।
सावधानियां
अल्सर और हर्निया से ग्रस्त व्यक्तियों और अग्रिम अवस्था वाली गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
उत्तानपाद आसन
यहां उत्तान का अर्थ ऊपर की ओर उठा हुआ (उर्ध्व दिशा) और पाद का अर्थ पैर है। इस आसन में उत्तान (चित) लेटकर पैरों को ऊपर उठाया जाता है। इसी कारण इस आसन का नामकरण उत्तानपादासन हुआ।
अभ्यास विधि
- जमीन पर आराम से लेट जाएं, पैरों की स्थिति सीधी हो और हाथों को बगल में रखें।
- श्वास लेते हुए घुटनों को बिना मोड़े
- धीरे-धीरे अपने दोनों पैरों को ऊपर उठाएं और 30 डिग्री का कोण बनाएं।
- सामान्य रूप से श्वास लेते हुए इस अवस्था में कुछ देर ठहरें।
- श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे अपने दोनों पैरों को नीचे लाएं और जमीन पर रखें।
- इस आसन को एक बार और दोहराएं।
लाभ
- यह आसन नाभि केंद्र (नाभिमणिचक्र) में संतुलन स्थापित करता है।
- यह उदर पीड़ा, वाई (उदर – वायु), अपच और अतिसार (दस्त) को दूर करने में सहायक होता है।
- यह उदर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।
- यह आसन घबराहट और चिंताओं से उबरने में सहायक है।
- यह श्वसन क्रिया को उन्नत करता है और फेफड़े की क्षमता में वृद्धि करता है।
सावधानियां
गहरे तनाव से पीड़ित मरीज बिना श्वास रोके बारी-बारी से अपने पैरों का उपयोग करते हुए इस आसन का अभ्यास करें।
अर्धहलासन
अर्ध का अर्थ ‘आधा’ और ‘हल’ का अर्थ है खेत जोतने वाला हल। इस आसन में शरीर की स्थिति खेतों की जुताई करने वाले भारतीय हल की अर्द्धआकृति जैसी हो जाती है।
इसी कारण इसका नाम हलासन पड़ा।
अभ्यास विधि
- उत्तान अवस्था में बैठ जाएं, दोनों हाथ जांधों के बगल में रखें और हथेलियां जमीन पर हों।
- घुटने को बिना मोड़े अपने पैरों को धीरे- रे-धीरे ऊपर उठाएं और 30 डिग्री पर लाकर रोक दें।
- थोड़ी देर इसी अवस्था में बने रहें, कुछ देर बाद पुनः पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं और 60 डिग्री पर रोक दें।
- इसके बाद थोड़ा रुककर पुन: पैरों को ऊपर उठाते हुए 90 डिग्री पर लाकर रोक दें, यह हलासन की उचित मुद्रा है।
- इस अवस्था में नितंब से कंधे की स्थिति खींची हुई रहेगी।
- इस अवस्था में तब तक रहें जब तक आप रह सकते हैं।
- अपने पैरों को 90 डिग्री की स्थिति से धीरे-धीरे वापस जमीन पर लाएं।
ध्यान रहे वापसी की स्थिति में सिर जमीन से ऊपर न उठे।
लाभ
- यह आसन बदहज़मी और कब्ज़ियत से छुटकारा दिलाता है।
- यह आसन मधुमेह, बवासीर और गले संबंधी समस्याओं से छुटकारा दिलाने में सहायक है।
- यह आसन गहरे तनाव से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए अत्यंत लाभदायक है, परंतु उन्हें बड़ी सावधानी पूर्वक यह आसन करना चाहिए।
- उदर में जख्म होने, हर्निया आदि से पीड़ित व्यक्तियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
पवनमुक्तासन
पवन शब्द का अर्थ वायु और मुक्त शब्द का अर्थ छोड़ना या मुक्त करना है। जैसा कि इस अभ्यास के नाम से ही पता चलता है, यह आसन उदर एवं आंतों से वायु या वात बाहर निकालने में उपयोगी है।
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम पीठ के बल लंबवत् लेटना चाहिए।
- दोनों घुटनों को मोड़ते हुए जांघों को वक्ष के ऊपर ले आएं।
- दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में गूंथते हुए पैरों को पकड़ लें।
- वुड्डी को घुटनों के नीचे ले आएं।
- श्वास बाहर छोड़ते हुए सिर को तब तक ऊपर उठाएं, जब तक कि ठुड्डी घुटनों से नहीं लग जाए। कुछ समय तक इस स्थिति में रुकें।यह अभ्यास पवनमुक्तासन कहा जाता है।
- सिर को वापस जमीन पर ले आएं।
- श्वास बाहर छोड़ते समय पैरों को जमीन पर ले आएं।
- अभ्यास के अंत में शवासन में आराम करें।
ध्यातव्य
- पैरों की गतिविधि के अनुसार श्वास-प्रश्वास को एक लय में लाना चाहिए।
- घुटनों को ललाट से स्पर्श करते यह अनुभव करना चाहिए कि कटि प्रदेश में खिंचाव हो रहा हैं; आंखें बंद रखनी चाहिए। ध्यान कटि प्रदेश पर होना चाहिए।
लाभ
- कब्जियत दूर करता है; वात से राहत दिलाता है और उदर के फुलाव को कम करता है। पाचन क्रिया में भी सहायता करता है।
- गहरा आंतरिक दबाव डालता है श्रोणि और कटिक्षेत्र में मांसपेशियों, लिगामेंट्स और स्नायु की अति जटिल समस्याओं का निदान करता है और उनमें कसावट लाता है।
- यह पीठ की मांसपेशियों और मेरु के स्नायुओं को सुगठित बनाता है।
सावधानियां
उदर संबंधी व्याधि, हर्निया, साइटिका या तीव्र पीठ दर्द तथा गर्भावस्था के समय इस अभ्यास को न करें।
शवासन
शव शब्द का अर्थ मृत देह है। इस आसन में अंतिम अवस्था एक मृत देह जैसी होती है
शारीरिक स्थितिः निष्क्रिय शिथिल स्थिति।
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम पीठ के बल लेट जाना चाहिए।
- हाथों और पैरों को आरामदायक स्थिति में फैलाकर रखें। आंखें बंद होनी चाहिए।
- पूरे शरीर को अचेतन अवस्था में शिथिल छोड़ दें।
- नैसर्गिक श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करें।
लाभ
- शरीर तथा मस्तिष्क दोनों को आराम प्रदान करता है।
- पूरे मन तथा शरीर तंत्र को विश्राम प्रदान करता है।
- बाहरी दुनिया के प्रति लगातार आकर्षित होने वाला मन अंदर की ओर गमन करता है। इस तरह धीरे-धीरे महसूस होता है कि मस्तिष्क स्थिर हो गया है।अभ्यासकर्ता बाहरी वातावरण से अलग होकर शांत बना रहता है।
- तनाव एवं इसके परिणामों के प्रबंधन में यह बहुत लाभदायक होता है।
4 .कपालभाति
शारीरिक स्थिति: कोई भी ध्यानात्मक आसन जैसे सुखासन / पद्मासन / वज्रासन आदि
अभ्यास विधि
- इस अवस्था में तब तक रहें, जब तक कि पूर्ण विश्रान्ति एवं चित्त शान्त न हो जाए।
- सर्वप्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं।
- आंखें बंद करके पूरे शरीर को शिथिल कर लें।
- दोनों नासिकारंधों से गहरी सांस लें और वक्ष स्थल को फैलाएं।
- दोनों नथुनों से गहरी श्वास अंदर खींचते हुए वक्ष को फुलाएं।
- उदर की मांसपेशियों को दबाव पूर्वक अन्दर बाहर करते हुए श्वास छोड़ें और ग्रहण करें।
- सक्रियता पूर्वक श्वास बाहर छोड़ना एवं निष्क्रियता पूर्वक उच्छ्वास करना चाहिए।
- कम से कम तीव्र श्वास के 30 चक्र पूरा करना चाहिए।
- इसके बाद गहरी श्वास अंदर लेते हुए धीरे-धीरे बाहर छोड़े।
- इस तरह कपालभाति का एक चक्र पूरा होता है।
- इसी प्रकार प्रत्येक चक्र पूरा करने के बाद गहरी श्वास लेनी चाहिए।
- इस अभ्यास को कम से कम दो बार और दोहराना चाहिए।
श्वसन क्रिया: यह श्वसन क्रिया उदर की मांसपेशियों के सहयोग से बिना किसी अतिरिक्त दबाव के होनी चाहिए। श्वास बाहर छोड़ने की क्रिया वक्ष एवं कंधा क्षेत्र में बिना किसी अनुचित दबाव अथवा गतिविधि के होनी चाहिए। पूरे अभ्यास के समय श्वास – उच्छ्वास सहज रूप से होना चाहिए।
अभ्यास की चक्र संख्या: प्रारंभिक अवस्था में 3 चक्र तक अभ्यास कर सकते हैं। प्रत्येक चक्र में 20 श्वासोच्छवास संख्या होनी चाहिए। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाया जा सकता हैं।
लाभ
- कपालभाति कपाल को शुद्ध करता है कफ विकारों को समाप्त करता है।
- यह जुकाम, साइनोसाइटिस, अस्थमा एवं श्वास नली संबंधी संक्रमणों में लाभदायक है।
- यह पूरे शरीर का कायाकल्प करता है और चेहरे को सुकोमल और दीप्तिमान बनाए रखता है।
- यह तंत्रिका तंत्र को संतुलित कर शक्तिशाली बनाता है साथ ही साथ पाचन तंत्र को शक्तिशाली बनाता है।
सावधानियां
हृदय संबंधी व्याधियों में, चक्कर आने, उच्च रक्तचाप, नासिका से रक्त प्रवाह, मिरगी, माइग्रेनस्ट्रोक, हर्निया एवं गैस्ट्रिक अल्सर होने की स्थिति में इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
5 .प्राणायाम
नाड़ी शोधन अथवा अनुलोम विलोम प्राणायाम
इस प्राणायाम की मुख्य विशेषता है कि बाएं एवं दाएं नासिकारन्ध्रों से क्रमवार श्वास प्रश्वास को रोककर अथवा बिना श्वास-प्रश्वास रोके श्वसन किया जाता है।
शारीरिक स्थिति :कोई भी ध्यानात्मक आसन।
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं।
- मेरुदण्ड की अस्थि एवं सिर को सीधा रखें और आंखें बंद कर लें।
- कुछ गहरी श्वासों के साथ शरीर को शिथिल कर लें
- ज्ञान मुद्रा में बाई हथेली बाएं घुटने के ऊपर रखनी चाहिए। दायां हाथ नासाग्र मुद्रा में होना चाहिए।
- अनामिका एवं कनिष्ठिका अंगुली बाई नासिका पर रखनी चाहिए। मध्यमाऔर तर्जनी अंगुली को मोड़कर रखें। दाएं हाथ का अंगूठा दाईं नासिका पररखना चाहिए
- बाईं नासिका से श्वास ग्रहण करें। इसके बाद कनिष्ठिका और अनामिका अंगुलियों से बाईं नासिका बंद कर लें। दाई नासिका से अंगूठा हटा कर वहां से (दाईं नासिका) श्वास बाहर छोड़ें।
- तत्पश्चात् एक बार दाईं नासिका से श्वास ग्रहण करना चाहिए।
- श्वासोच्छ्वास के अंत में दाईं नासिका को बंद करें, बाईं नासिका खोलें तथा इसके द्वारा श्वास बाहर छोड़ दें।
- यह पूरी प्रक्रिया नाड़ी शोधन या अनुलाम विलोम प्राणायाम का एक चक्र है।
- यह पूरी प्रक्रिया पांच बार दोहराई जानी चाहिए।
अनुपात एवं समय
- प्रारम्भिक अभ्यासियों के लिए श्वासोच्छ्वास की क्रिया की अवधि बराबर होनी चाहिए।
- धीरे-धीरे इस श्वासोच्छवास क्रिया को क्रमशः 1: 2 कर देना चाहिए।
श्वसन
श्वसन क्रिया मंद, समान एवं नियंत्रित होनी चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का दबाव या अवरोध नहीं होना चाहिए।
लाभ
- इस प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य शरीर में ऊर्जा वहन करने वाले मुख्य स्रोतों का शुद्धिकरण करना है। अतः यह अभ्यास पूरे शरीर का पोषण करता है।
- मन में निश्चलता लाता है और शांति प्रदान करता है साथ ही एकाग्रता बढ़ाने में भी सहायक है।
- जीवन शक्ति बढ़ाता है और तनाव एवं चिंता के स्तर को कम करता है।
- यह कफ विकार को भी कम करता है।
शीतली प्राणायाम
शीतली का अर्थ है शीतल होना। यह साधक के चित्त को शांत करता है और मन की व्यग्रता को दूर करता है। जैसा कि शीतली प्राणायाम नाम से ही स्पष्ट है, यह शरीर औरमन को शीतलता प्रदान करता है। इस आसन की सृष्टि शरीर के तापमान को नियंत्रितकरने के लिए ही विशेष रूप से की गई है। इस प्राणायाम के अभ्यास से न केवल शरीर का तापमान नियंत्रित होता है, बल्कि मन भी एकदम शांत चित्त हो जाता है।
अभ्यास विधि
- पद्मासन मुद्रा अथवा किसी भी अन्य आरामदायक मुद्रा में बैठ जाएं।
- ज्ञान मुद्रा अथवा अंजलि मुद्रा की अवस्था में अपने हाथों को घुटनोंपर रख लें।
- जीभ को किनारों से मोड़कर टब का आकार बना लें।
- इस टबनुमा जीभ से सांस लेते हुए जितना हो सके हवा शरीर के अंदर प्रवेश कराएं और मुंह बंद कर लें।
- जालन्धर बन्ध मुद्रा में जितनी देर हो सके सांस को रोककर रखें।
- जालन्धर बन्ध मुद्रा से वापस आएं और नासिकारंधों धीरे-धीरे श्वास छोड़ें।
लाभ
- शीतली प्राणायाम रक्त को शुद्ध करता है।
- यह शरीर में शीतलता प्रदान करता है।
- उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए यह विशेष लाभप्रद है।
- यह भूख और प्यास का शमन करता है।
- कफ और पित्त के कारण होने वाले अपच और अन्य व्याधियों को दूर करता है।
- यह पुरानी से पुरानी बदहज़मी और तिल्ली रोग से छुटकारा दिलाता है (एस. पी. 2/58)।
- यह त्वचा और नेत्र के लिए भी लाभदायक है।
सावधानियां
- ठंड, कफ अथवा तुण्डिका – शोथ (टॉन्सिलाइट् इस) के मरीजों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- जब तक योग प्रशिक्षक सलाह न दें इस प्राणायाम को सर्दियों में नहीं करना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम
भ्रामरी शब्द भ्रमर से लिया गया है, जिसका मुख्य अर्थ है भौंरा। इस प्राणायाम केअभ्यास के समय निकलने वाला स्वर भ्रमर के भिनभिनाने के स्वर की तरह होता है।इसलिए इस योगासन का नाम भ्रामरी प्राणायाम है।
शारीरिक स्थिति :कोई भी ध्यानात्मक आसन।
अभ्यास विधिः I
- सर्वप्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में आंखें बंद कर बैठ जाएं।
- नासिका के द्वारा लम्बा गहरा श्वासखीचें।
- नियंत्रित ढंग से श्वास को धीरे-धीरेबाहर छोड़ें। श्वास छोड़तेहुए भौरे जैसी आवाज निकालें।
इस प्रकार भ्रामरी प्राणायामका एक चक्र पूर्ण होता है।
इसे और 2 बार दोहराएं।
अभ्यास विधिः II
- सर्वप्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसनमें आंखें बंद करके बैठ जाएं।
- नासिका के द्वारा लंबा गहरा श्वास खीचें।
- चित्र में दिखाए अनुसार अंगूठों से कर्णछिद्र बंद कर लें। तर्जनीअंगुली से आंखों को बंद करेंऔर नासिकारंध्रों कोमध्यमाअंगुली से बंद करें। इसे षणमुखी मुद्रा कहते हैं।
- धीरे-धीरे नियंत्रित रूप से श्वास को बाहर छोड़ते समय भौंरे जैसी आवाज निकालें। इस तरह भ्रामरी प्राणायाम
का एक चक्र पूर्ण होता है। - इसे और 2 बार दोहराएं।
लाभ
- भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास तनाव से मुक्त करता है। चिंता, क्रोध एवं अतिसक्रियता को घटाता है।
- भौरे जैसी आवाज का प्रतिध्वनिक प्रभाव मस्तिष्क एवं तंत्रिकातंत्र पर लाभकारी प्रभाव डालता है।
- यह महत्वपूर्ण शांतिकारक अभ्यास है; जो तनाव संबंधी विकारों को दूर करने में लाभकारी होता है।
- यह एकाग्रता और ध्यान की आरंभिक अवस्था में उपयोगी है।
सावधानियां
नाक एवं कान में यदि किसी प्रकार का संक्रमण हो तो इस आसन को नहीं करना चाहिए।
6. ध्यान
ध्यान लगातार चिंतन-मनन की एक क्रिया है।
शारीरिक स्थिति :कोई भी ध्यानात्मक आसन।
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं।
- मेरुदण्ड को बिना किसी प्रकार का कष्ट दिए सीधा रखें।
- निम्नानुसार ज्ञान मुद्रा में बैठें:
- अंगूठे और तर्जनी अंगुली के
सिरों को आपस में स्पृश कराएं।
- अन्य तीन अंगुलियां सीधी और आरामदायक स्थिति में होनी चाहिए।
- तीनों अंगुलियां एक-दूसरे के अगल-बगल हों और वे एक-दूसरे को स्पर्श करती हों।
- ऊपर की ओर खुली हुई हथेली को घुटनों पर रखें।
- हाथों एवं कंधों को ढीला और शिथिल कर देना चाहिए।
- आंखें बंद करके मुख को थोड़ा ऊपर की ओर उठाकर बैठ जाएं।
- मुख को थोड़ा सा ऊपर की दिशा मेंउठाकर एकाग्रचित्त मुद्रा में बैठ जाएं।बिना किसी पर विशेष ध्यान केंद्रित किए केवल अपनी भौंहों के बीच हल्का सा ध्यान केंद्रित करें और अपनी आती-जाती श्वासों को महसूस करें।
- पूर्व विचारों को छोड़ने का प्रयास करें। पवित्र व निर्मल विचार मन में लाने का प्रयास करें।
- इस स्थिति में ध्यान लगाकर कुछ समय तक बैठे रहें।
ध्यातव्य
- ध्यान अभ्यास की प्रारंभिक अवस्था में मन को प्रसन्नचित्त करने वाला संगीत बजाया जा सकता है।
- जितने अधिक समय तक सम्भव हो, इस स्थिति में रुकना चाहिए।
लाभ
- ध्यान योगाभ्यास का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।
- यह अभ्यासकर्ता को नकारात्मक भावनाओं से दूर रखता है, भय, क्रोध, अवसाद, चिंता दूर करता है और सकारात्मक भावनाएं विकसित करने में सहायता करता है।
- मस्तिष्क को शांत और निश्चल रखता है।
- एकाग्रता, स्मृति, विचारों की स्पष्टता और मनोबल को बढ़ाता है।
- पूरे शरीर और मस्तिष्क को पर्याप्त आराम देते हुए उन्हें तरोताजा करता है।
- ध्यान आत्म अनुभूति की ओर ले जाता है।
7 संकल्प (योग सत्र का समापन इस संकल्प के साथ करना चाहिए।)
हमें अपने मन को हमेशा संतुलित रखना है,
इसमें ही हमारा आत्मविकास समाया है,
मैं खुद के प्रति कुटुंब के प्रति काम समाज और विश्व के प्रति, शांति, आनंद
और स्वास्थ्य के प्रचार के लिए बद्ध हूं।
संकल्प ( योग सत्र का समापन इस संकल्प के साथ करना चाहिए।)
मैं संकल्प लेता हूं कि सर्वदा अपनी सोच में संतुलन बनाए रखूंगा। ऐसी मनः स्थिति मेरे उच्चत्तम आत्म-विकास की असीम संभावनाएं प्रदान करती है। मैं अपने कर्तव्य निर्वाह के प्रति कुटुंब और कार्य के प्रति तथा समाज व समूचे विश्व शांति स्वास्थ्य और सौहार्द के प्रसार के लिए कृत संकल्प हूं।
8. शांति पाठ
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिदुःखभाग्भवेत्।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
Sarve Bhavantu Sukhinah,
Sarve Santu Nirāmayah
Sarve Bhadrani Pasyantu,
Maa Kascit Duhkha Bhägbhavet
Shantih Shantih Shantih
सब सुखी हों, सब नीरोग हों।
सब निरामय हों, सबका मंगल हो,
कोई दुखी न हो।
नोट सांस्थानिक योग अभ्यास (आईवाईपी)
(प्राणायाम, ध्यान, योग निंद्रा और सत्संग को प्राथमिकता ) प्राणायाम अथवा ध्यान / ध्यान सत्र के पश्चात् किंतु संकल्प से पूर्व किया जाना चाहिए।
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FAQs
प्र. योग क्या है ?
उत्तर-मनुष्य शरीर एवं मन के बीच सामंजस्य स्थापित कर आत्म साक्षात्कार करता है
प्र.योग की सुरुआत कब हुई ?
उत्तर –आयुष मंत्रालय ने 21 जून, 2015 को राजपथ, नई दिल्ली में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का सफल आयोजन किया
प्र.योग का संक्षिप्त इतिहास क्या है ?
उत्तर- योग विद्या का उद्भव हजारों वर्ष प्रचीन है। श्रुति परंपरा के अनुसार भगवान शिव योग विद्या के प्रथम आदि गुरु, योगी या आदियोगी हैं।
प्र. योग का विकास क्या है ?
उत्तर-योग का व्यापक स्वरूप तथा उसका परिणाम सिंधु एवं सरस्वती नदी घाटी सभ्यताओं 2700 ई.पू.- की अमर संस्कृति का प्रतिफलन माना जाता है