45 Days Reading Campaign|| रीडिंग कैंपेन || 45 days reading campain||dhyanakarshan|| gatividhi shikshan||kriya kalap||45 Days Reading Campaign
Table of Contents
रीडिंग कैम्पेन किसे कहते है ?
बच्चो को पढ़ने में रोचकता पैदा करना और ज्यादा से ज्यादा बच्चो को खेलकूद माध्यम से बच्चो का चौतरफा विकास करना | ये रीडिंग कैम्पेन 45 दिनों के लिए चलाया जा रहा है
पठन
“पढ़ने की पद्धुति विद्यालय, शिक्षक एवं सीखने के प्रति रिश्ते को निर्धारित करती है। यदि पढ़ना सिखाने की पद्धति सरल एवं रोचक होगी तो बच्चे को सीखना
सरल एवं रोचक लगेगा तथा शिक्षक प्रिय एवं संपर्क योग्य प्रतीत होगा। पढ़ना सिखाने की सरल पद्धति द्वारा विद्यालय से बच्चों के पलायन को रोका जा सकता है। पढ़ना
सिखाना एक कौशल देने भर तक सीमित नहीं है. बल्कि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से जोड़ने का एक व्यापक अभियान है। अतः इस प्रकरण को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
पठन को समृद्ध करने वाले अभ्यास कार्य
1.चित्र पठन- चित्रों को देखना, समझना
और उस पर चर्चा
2.शब्द /वर्ण पठन- चित्र और शब्दों के
मिलान से पठन। वर्णों से शब्द निर्माण।
3.वाक्य पठन- सचित्र सामग्री जिसमें
मात्र एक या दो शब्दों से बने सार्थक
वाक्य। वर्ण पहचानते हुए पठन।
4.अनुच्छेद पठन- शिक्षक द्वारा आदर्श
पठन बच्चों द्वारा अनुकरण पठन। सरल
अनुच्छेद पठन।
5.पूर्व पाठ्यवस्तु का पठन- शिक्षक
द्वारा आदर्श पठन। एकल। समूह पठन।
उच्चारण के साथ पठन। मौन पठन।
आधारशिला क्रियान्वयन संदर्शिका में दी
गई कविताओं और कहानियों का संग्रह
कविताएं
1.मुर्गी माँ
2.नन्हा खरगोश
3.तितली रानी
4.हाथी
5.अइ्धक बद्द्क
6.कोयल रानी
7 .दो आलू
৪.शेखचिल्ली
9.चूहा
10.जादू की गठरी
11.गप्पू जी
12.मामा मटरू
13. गुलगुला
14.रेलवे स्टेशन
15.तारे
16.पतंग
17चंदा मामा
18.सोमवार
19.बादल
20.चपाती
21.नानी कहे कहानी
22.न्यौता
24.टब और भालू
आधारशिला क्रियान्वयन संदर्शिका में दी
गई कविताओं और कहानियों का संग्रह
कहानियों
1,रेडियो और चुहिया
2.भालू का बच्चा और बाघ के बच्चे
3.बंदर और गिलहरी
4.सियार और ऊँट
5.कछुआ और खरगोश
6.भूखा बगुला
৪.वह हँस दिया
9.कौवा और लोमड़ी
10.अनोखी दोस्ती
11.रोटी गई, रोटी आई
12.मगरमच्छ
13.दर्जी और हाथी
कविताएं
मुर्गी माँ
मुर्गीं माँ घर से निकली,
झोला ले बाजार चली। !
बच्चे बोले चें चें चें.
अम्मा हम भी साथ चलें।
नन्हा खरगोश
छोटा सा नन्हा खरगोश,
देखो, देखो उसका जोश।
धूप तापता, दौड़ लगाता,
फिर झट झाड़ी में घुस जाता।
तितली रानी, तिलती रानी
तितली रानी, तिलती रानी,
तुम हो चंचल बड़ी सयानी।
डाल-डाल पे झूमती हो;
फूल-फूल को चूमती हो,
इतनी मस्ती में मत आओ.,
इन पंखों पर मत इतराओ।
हाथी
हाथी राजा बहुत भले,
सूँड हिलाते कहाँ चले?
कान हिलाते कहाँ चले?
मेरे घर आ जाओ ना,
हलवा पूरी खाओ ना।
अद्दक बद्क
अद्धक बद्क चम्पा,
उसमें गला घण्टा।
बारह बजे की छुट्टी में,
बारह मिट्ठू बैठे थे।
एक मिट्ठू कच्चा,
वही रंग का पक्का।
कोयल रानी
कोयल रानी, कोयल रानी,
कहाँ मिली यह मीठी बानी?
किसी नदी ने दावत में क्या
तुझे पिलाया शक्कर पानी ?
दो आलू
एक प्लेट में दो आलू,
मोटा बोला मैं खा लूँ।
खाते-खाते थक गया,
रोटी लेकर भाग गया।
रोटी गिर गई रेत में,
मोटू रोया खेत में।
शेख चिल्ली
एक था शेख चिल्ली,
उसने पाली बिल्ली।
बिल्ली गई दिल्ली,
दिल्ली में थी किल्ली।
किल्ली के ऊपर चढ़ गई बिल्ली,
सब ने उड़ाई खिल्ली।
चूहा
वह देखो वह आता चूहा,
आँखों को चमकाता चूहा,
मुछों में मुस्काता चूहा,
लंबी पूँछ हिलाता चूहा,
मक्खन-रोटी खाता चूहा,
बिल्ली से डर जाता चूहा।
जादू की गठरी
जादू की एक गठरी लाऊँ,
बच्चों में बच्चा बन जाऊँ।
एक जेब से शेर निकालूं,
एक जेब से भालू।
दोनों को झटपट खा जाऊँ,
जाद की जो गठरी लाऊँ।
गप्पू जी
आलू की कचौड़ी, दही के बड़े.
मुन्नी की चुन्नी में तारे जड़े।
मूंग की मंगोड़ी, कलमी बड़े,
मंगू की छत पर दो बंदर लड़े।
खस्ता कचौड़ी, कांजी के बड़े,
गप्पूजी फिसले तो औधे पड़े।
मामा मटरू
मामा मटरू जब भी आते,
सोते तो सोते ही जाते,
सोते तो सोते ही जाते।
जब भी उन्हें जगाना होता,
ढम-ढम ढोल बजाना होता,
ढम-ढम ढोल बजाना होता।
गुलगुला
छुट्टी हुई खेल की ,
चढ़ी कढ़ाई तेल की।
सुर-सुर उठता बुलबुला,
छुन-छुन सिकता गुलगुला।
भूलभुला और पुलपुला,
मीठा-मीठा गुलगुला।
रेलवे स्टेशन
छुक-छुक करती रेल चली,
शोर मचाती रेल चली।
इंजन धुआँ उड़ाता है,
सरपट दौड़ लगाता है।
कितने सारे लोग यहाँ,
इधर उधर है भीड़ जमा।
कितने डिब्बे इथर खड़े,
कितने इंजन बड़े-बड़े।
तारे
आसमान में निकले तारे,
चंदा मामा कितने प्यारे।
सबके मन को बहलाते हैं,
नई चांदनी दिखलाते हैं।
आओ चंदा मामा आओ,
अपने घर की बात बताओ।
सबके मन को बहलाओ,
नई चांदनी दिखलाओ
पतंग
सर-सर-सर -सर उड़ी पतंग,
फर-फर-फर-फर उड़ी पतंग।
इसको काटा, उसको काटा,
खूब लगाया सैर सपाटा।
अब लड़ने में जुटी पतंग,
अरे कट गई, लुटी पतंग।
चंदा मामा
चंदा मामा आएँगे,
दूध बताशे लाएँगे।
चिड़िया चावल लाएगी,
दादी खीर पकाएगी।
हम सब मिलकर खाएँगे,
जब चंदा मामा आएँगे
सोमवार
आज सोमवार है,
चूहे को बुखार है।
चूहा हुआ उदास,
पहुँचा डॉक्टर के पास।
डॉक्टर ने लगाई सुई,
चूहा बोला- उई।
बादल
बादल के जी में क्या आई,
सबकी करने चला सफाई।
धो दिए पेड़, थो दी घास,
धो दिया सब कुछ आस और पास।
धुल गई पटरी, धुली दुकान,
सड़कों के तालाब बनाए,
बच्चे बूढ़े सभी नहाए
चपाती
ताती-ताती एक चपाती,
दिखी तवे पर पेट फुलाती।
बिल्ली मौसी बोली म्याऊँ,
भूख लगी मैं तुझको खाऊँ।
सुनकर उछली दूर चपाती,
बोली फिर आंखें मटकाती।
मौसी पहले मक्खन ला,
फिर चाहे मुझको खा जा।
नानी कहे कहानी
चंदू की नानी कहे कहानी,
एक था शरबत,एक था पानी।
नानी पिये शरवत, चंदू पिए पानी,
रूठ गया चंदू ,खत्म हुई कहानी।
न्यौता
चूहे के घर न्यौता है,
देखो क्या-क्या होता है!
चिड़िया चावल लाएगी,
बिल्ली खीर पकाएगी।
बंदर पान बनाएगा,
शेर पान खाएगा।
मुन्ना तू क्यों रोता है?
तेरा भी तो न्यौता है।
मनीराम
इतनी लंबी मूँछ।
सटक चले मर्नीराम,
मटक चली मूँछ।
जित्ते बड़े मनीराम,
उनसे बड़ी मूँछ।
लटक चले मनीराम,
चटक चली मुँछ।
टब और भालू
टब में छिपने आया भालू,
किंतु छिप नहीं पाया भालू।
टब छोटा और भालू था मोटा,
राजू बहुत अधिक था खोटा।
उसने जाकर खोल दिया नल,
नल से निकल पड़ा शीतल जल।
जल में खूब नहाया भालू,
किंतु डूब न पाया भालू।
रेडियो और चुहिया
एक भाई साहब रेडियो सुन रहे थे। उनके
रेडियो में चुहिया घुस गई। चुह्िया ने तार
काट दिया। इसलिए वह बज नहीं रहा
| भाई साहब दुकान पर सुधरवाने
गए। दुकानदार ने रेडियो खोला तो उसमें
से चुहिया निकलकर भागी।
भाई साहब कहने लगे, “भैया बंद कर
दे, भैया बंद कर दे।” दुकानदार बोला,
“ठीक तो हुआ ही नहीं है।” भाई साहब
कहने लगे, अब क्या सुधरेगा! गाने वाली
तो भाग गई।”
भालू का बच्चा और बाघ के बच्चे
भालू का बच्चा बगीचे में झूल रहा था। दो बाघ के बच्चे भी
बगीचे में आ गए। “हमें झूलने दो।” बाघ के बच्चों ने कहा।
“इस पर झूल लो।” भालू के बच्चे ने दूसरे झूले की ओर
इशारा करते हुए कहा। “दिखता नहीं? हम दो हैं।” बाघ के
बच्चे ने कहा, “तुम दो हो तो बारी -बारी से झूलो।” भालू
के बच्चे ने झूलते हुए कहा। बाघ के बच्चे ने जमीन से रेत
उठाकर भालू के बच्चे के ऊपर उड़ेल दी।
भालू का बच्चा झूले से कूदा और पापा भालू को आवाज
लगाई। बाघ के बच्चों ने देखा- सचमुच बड़ा भालू उधर
खड़ा था। वे दोनों एक साथ भागे। गिरते-पड़ते दीवार कूदे।
दीवार कूदते ही और जोर से भागे। भालू का बच्चा दोनों
झूलों पर बारी-बारी से झूलता रहा। झूलते हुए उसने सोचा-
“कहीं वे अपने मम्मी-पापा को बुला लाए तो? मैंने काफी
झूल लिया। दोनो झूलों पर अकेला कब तक झूलूँ” सोचते
हुए वह भी वहां से चला गया।
बंदर और गिलहरी
एक बंदर पेड़ पर बैठा था। बंदर की पूँछ
लंबी थी। इतनी लंबी थी कि जमीन तक लटक
रही थी। एक गिलहरी जमीन पर उछल -कूद कर
रही थी। अचानक उसे पूँछ दिखाई दी। उसने
सोचा- “यह झूला कहां से आ गया?” थोड़़ी देर
पहले तो नहीं था। वह पूँछ पर चढ़कर झूलने
लगी। बंदर को गुदगुदी हुई। उसने नीचे देखा।
वह हुँसकर बोला- “बहन गिलहरी! यह क्या कर
रही हो? मुझे गुदगुदी हो रही है।” गिलहरी चाँकी-
“बंदर भेया यह तुम हो? मैं तो तुम्हारी पूछ को
झूला समझकर झूल रही थी। बड़ा मजा आ रहा
था।” उसके बाद गिलहरी हँसती हुई पेड़ की डाली
पर चढ़ गई।
सियार और ऊँट
सियार और ऊँट की पक्की दोस्ती थी।एक दिन
दोनों फल खाने के लिए बगीचे में चुपचाप घुस
गए। सियार का पेट जल्दी भर गया पर ऊँट खाता
रहा। तभी सियार ने कहा, “मेरा हूँक लगाने का
समय हो गया है।” ऊँट ने मना किया पर सियार
नहीं माना। हूँक सुनकर बगीचे के रखवाले आ
गए। सियार तो भाग गया पर ऊँट की खूब पिटाई
हुई। कुछ दिनों बाद वे दोनों फिर मिले। सियार
ऊँट की पीठ पर बैठा। दोनों ने नदी पार करना
शुरू किया। बीच नदी में जाकर ऊँट बोला, “मेरा
इबकी लगाने का मन कर रहा है।” सियार ने मना
किया पर ऊँट ने नदी में इुब्की लगा दी। सियार
नदी में कंडे जैसा बह गया।
कछुआ और खरगोश
एक बार खरगोश ने कछुए को अपने साथ दौड़
लगाने को कहा। कछूए ने उसकी बात मान ली।
दौड़ शुरू हुई। खरगोश तेजी से भागा। काफी आगे
दौड़ शुरू हुई । खरगोश तेजी से भागा। काफी आगे
जाने पर पीछे मुड़कर देखा, कछुआ कहीं आता
नजर नहीं आया। उसने मन ही मन सोचा, “कछुए
को तो यहां तक आने में बहुत समय लगेगा चलो
थोड़ी देर आराम कर लेते हैं।” वह एक पेड़ के नीचे
लेट गया लेटे-लेटे कब उसकी ऑँख लग गई पता ही
नहीं चला। उधर कछुआ धीरे-धीरे लगातार चलता
रहा। खरगोश गहरी नींद में सो रहा था। इधर कछुआ
पहुँच चुका था। अचानक खरगोश की ऑँख खुली
खरगोश तेजी से भागा लेकिन तब तक बहुत देर हो
चुकी थी कछुआ दौड़ जीत गया।
भूखा बगुला
एक बगुला था। उसे भूख लगी थी। वह
खाना खाने खेत में गया। खेत में उसे मूली
मिली। मूली लेकर वह खाने लगा। तभी
उसे तालाब दिखा। तालाब में मछलियां
थी। उसने सोचा, “मूली और मछली साथ
खाए तो मजा आ जाए।” वह मछली
पकड़ने गया। तालाब में मगरमच्छ था।
मगरमच्छ उसके पीछे दौड़ा। बगुला,
लेकर भागा। बगुले को घड़ा दिखाई ।५५
उसने मूली घड़े में डाली। और भाग गया।
घड़े में चूहे थे। चूहे मूली खा गए। बगुला
लौटा तो देखा, घड़ा खाली था।
लालची कुत्ता
एक बार एक कुत्ते को कई दिनों तक कुछ खाने को
नहीं मिला। बेचारे को बहुत जोर से भूख लगी थी।
तभी किसी ने उसे एक रोटी दी। कु्ता रोटी लेकर
एक पुल पर चला गया। पुल के नीचे पानी बह रहा
था। उसने नीचे देखा। उसकी नजर पानी में पड़ी
तो देखा कि एक कुत्ता पूरी रोटी मुँह में दबाए नीचे
पानी में खड़ा है। उसे नहीं पता था कि वह उसकी
ही परछाई है। वह अपनी ही परछाई को दूसरा कुत्ता
समझ रहा था। कुत्ते ने सोचा,” मैं यह रोटी इससे
छीन लूं तो भरपेट खा लूंगा।” और वह रोटी जीने के
लिए पानी में दिखाई देने वाले उस कुत्ते पर भौका।
मुँह खोलते ही उसकी रोटी पानी में जा गिरी और
बह गई। फिर तो उसे भूखे पेट ही सोना पड़ा।
वह हॅस दिया
हिरण का बच्चा दौड़ रहा था। खरगोश से
आगे। हाथी से भी आगे। वह नाला कूद
गया। पार कर गया। मैदान में पत्थर पड़ा
था। ठोकर लगी तो गिर पड़ा। वह रोने
लगा। बंदर ने पैर सहलाया। वह चुप ना
हुआ। भालू दादा ने गोद में उठाया। वह
चुप ना हुआ। माँ आई। बोली, “लो पत्थर
को मार दिया।” हिरण का बच्चा बोला,
“इसे मत मारो वरना यह भी रोने लगेगा।”
माँ हँस दी। वह भी हँसने लगा।।
कौआ और लोमड़ी
एक बार एक कौए को एक रोटी मिली।
एक लोमड़ी ने उसे देख लिया। लोमड़ी
लालची थी। लोमड़ी ने सोचा,”क्यों ना
मैं इसको मुर्खव बनाकर रोटी ले लूँ।” वह
कौए के पास गई । कौवा पेड़ पर बैठा था।
लोमड़ी बोली,”भाई तुम इतना अच्छा
गाते हो मुझे भी एक गाना सुनाओ।”
अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गया। वह
गाने लगा। कौए ने जैसे ही गाने के लिए
मुँह खोला, रोटी नीचे गिर गई। लोमड़ी
रोटी लेकर भाग गई।
अनोखी दोस्ती
एक स्कूल में दो कुत्ते रहते थे। उनका जन्म कक्षा के पीछे हुआ
था। स्कूल के बच्चों का भी उन कुत्तों के साथ काफी लगाव
था। बच्चों ने प्यार से एक का नाम कालू और दूसरे का नाम
शेरू रखा था।
कालू और शेरू के साथ बच्चों की अच्छी दोस्ती हो गई थी।
वह कुछ खाने को लाते तो कालू और शेरू को भी खिलाते।
जब तक स्कूल लगा रहता कालू और शेरू स्कूल में रहते। जब
छुट्टी होती तो वह बच्चों के साथ उनके घर तक जाते।
एक बार स्कूल में दो बैल घुस आए । वह दिखने में 39/ 42
वे स्कूल में लगे पेड़-पौधों को खाने लगे। शिक्षक और बच्चों ने
उनको भगाने की कोशिश की। मगर वे उल्टा उन्हीं को मारने
लपके।फिर कालू और शेरू दोनों बैलों पर जोर-जोर से भौकने
लगे। इससे बैल थोड़े घबराए। यह देखकर कालू और शेरू और
जोर-जोर से भौंकने लगे। वे बुरी तरह बैलों के पीछे पड़ गए।
इससे डरकर बैल स्कल से बाइर चले गए।
मगरमच्छ
नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पर
चिड़िया रहती थी। पास में एक लड़का
रहता था। दोनों दोस्त थे। वो साथ खेलते
थे। नदी में एक मगरमच्छ रहता था।
मगरमच्छ ने कहा,”मैं तुम्हारे साथ खेलूँ ”
दोनो ने मना कर दिया। मगरमच्छ नाराज
हो गया। एक दिन मगरमच्छ ने लड़के
का पैर पकड़ लिया। चिड़िया बोली,
“इसे छोड़ दो।” मगरमच्छ बोला, “मुझसे
दोस्ती करोगी?” दोनों ने मगरमच्छ की
बात मान ली। अब तीनों दोस्त बन गए।
रोटी गई, रोटी आई।
कमल के घर में कुत्ता था। उसका नाम था भौँकू।
एक दिन कमल भौँंकू को रोटी देने गया। तभी एक
बंदर रोटी छीनकर भागा। वह छत की दीवार पर
बैठ गया। एक कौए ने रोटी देखी। उसने बंदर से
रोटी झपट ली। कौआ उड़ कर ऑगन में पीपल पर
बैठा गया। उस पर एक मोर बैठा था।
उसकी नजर रोटी पर पड़ी।कौआ रोटी बचाने
झटपट उड़ा। नीचे से भौँकू ने शोर मचाया,
“भ-भौ-भौं-भौ!” कौआ घबरा गया। उसके मुंह
से निकला, “कॉँव-कॉँव!” उसकी चोंच से रोटी छूट
गई। वह आँगन में जाकर गिरी। भौकू ने लपक कर
उठा लिया। जिसकी रोटी थी, उसे मिल गई।
बैठा गया। उस पर एक मोर बैठा था।
उसकी नजर रोटी पर पड़ी।कौआ रोटी बचाने
झटपट उड़ा। नीचे से भौँकू ने शोर मचाया,
“भ-भ-भो-भौ!” कौआ घबरा गया। उसके मुंह
से निकला, “कॉँव-कॉँव! ” उसकी चोंच से रोटी छूट
गई। वह आँगन में जाकर गिरी। भौंकू ने लपक कर
उठा लिया। जिसकी रोटी थी, उसे मिल गई।
दर्जी और हाथी
एक समय की बात है। एक गाँव में एक दर्जी रहता था।
उसी गाँव में एक हाथी भी रहता था। वह दर्जी की दुकान
से होकर रोज नदी में नहाने के लिए जाया करता था। एक
बार दर्जी ने हाथी को एक केला खाने के लिए दिया। उस
दिन से हाथी हर रोज दर्जी की दुकान पर आता। दर्जी
उसे रोज कुछ ना कुछ खाने को देता।वे आपस में पक्के
मित्र बन चुके थे।
एक दिन दर्जी ने हाथी के साथ मजाक करने की सोची।
दर्जी ने हाथी को केले के बजाय उसकी सूँड में सुई चुभा
दी। हाथी को गुस्सा आया। वह वहाँ से नदी में नहाने चला
गया। हाथी ने लौटते समय अपनी सूँड में खूब कीरचड़
वाला पानी भर लिया। वह दज्जी की दुकान पर आया।
उसने सारा पानी दर्जी और उसके कपड़ों पर छिड़क
दिया। अब दर्जी के सारे कपड़े खराब हो चुके थे। दर्जी
अपने किए मजाक पर बहुत पछता रहा था।
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