योग क्या है? – What is Yoga in Hindi?
योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जु अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है।
Table of Contents
योगासन के प्रकार [Types of Yoga]
1. प्रार्थना
योग का अभ्यास प्रार्थना के मनोभाव से शुरू करना चाहिए। ऐसा करने से योग अभ्यासियों को अधिकाधिक लाभ होगा।
ॐ संगच्छध्वं संवदध्वं
संवो मनांसीजानताम्
देवा भागं यथा पूर्व
सञ्जानाना उपासते ||
Samgacchadhvam samvadadhvam
sam vo manāmsijänatām
devä bhagam yathā purve
saūjānānā upāsate ||
हम सभी प्रेम से मिलकर चलें, मिलकर बोलें और सभी ज्ञानी बनें। अपने पूर्वजों की भांति हम सभी कर्तव्यों का पालन करें।
2 .सदलज / चालन क्रियाएं / शिथिलीकरण अभ्यास
सदलज / चालन क्रिया / शिथिलीकरण के अभ्यास शरीर में सूक्ष्म संचरण बढ़ाने में सहायता प्रदान करते हैं। इस अभ्यास को खड़े या बैठने की स्थिति में किया जा सकता है।
(क)ग्रीवा चालन
शारीरिक स्थिति :समस्थिति
अभ्यास विधि
प्रथम चरण (आगे तथा पीछे की ओर झुकना)
- पैरों के बल आराम से खड़े हो जाएं।
- हाथों को शरीर के बगल में सीधा रखें।
- यह अभ्यास समस्थिति है। इसे ताड़ासन भी कहते हैं।
- अभ्यास के समय हाथों को कमर पर रखें।
- श्वास को बाहर निकालते हुए.
- सिर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाएं और वुड्डी को वक्ष पर स्पर्श कराने की कोशिश करें।
- श्वास को अंदर लेते हुए सिर को जितना पीछे ले जा सकते हों, पीछे ले जाएं।
- यह एक चक्र पूर्ण हुआ इस विधि को और दो बार दोहराएं।
द्वितीय चरण :(दाई एवं बाईं ओर झुकना)
- श्वास को बाहर छोड़ते हुए, सिर को धीरे-धीरे दाईं ओर झुकाएं कान को कंधे के जितना नकदीक लाना संभव हो, लाएं। इस बात का ध्यान रखें कि कंधे ऊपर की ओर अधिक नही उठे होने चाहिए।
- श्वास को अंदर ग्रहण करते हुए सिर को सामान्य स्थिति में लाएं।
- इसी प्रकार, श्वास को बाहर छोड़ते हुए सिर को बाईं तरफ झुकाएं।
- श्वास को अंदर खींचें और सिर को सामान्य स्थिति में लाएं।
- यह एक चक्र पूर्ण हुआ। इस विधि को और दो बार दोहराएं।
तृतीय चरण :(दायें एवं बाएं घुमाना )
- सिर को सीधा रखें।
- श्वास को बाहर छोड़ते हुए, सिर को आराम से दाईं ओर घुमाएं, जिससे ठुड्डी और कंधे एक बराबर में हो जाएं।
- श्वास को अंदर लेते हुए, सिर को सामान्य स्थिति में लाएं।
- इसी प्रकार, श्वास को बाहर छोड़ते हुए, सिर को बाईं ओर घुमाएं।
- श्वास को अंदर लेते हुए सिर को सामान्य स्थिति में लाएं।
- यह एक चक्र पूर्ण हुआ। इस विधि को और दो बार दोहराएं।
चतुर्थ चरण : ग्रीवा घुमाना
- श्वास छोड़ते हुए को आगे की ओर झुकाएं और ठुड्डी को सीने से स्पर्श कराने की कोशिश करें।
- श्वास को अंदर लेते हुए सिर को धीरे-धीरे घड़ी की सुई की दिशा में घुमाएं तथा वापस लाते समय श्वास को बाहर छोड़ें।
- इस प्रकार ग्रीवा एक बार पूरी तरह से घुमाएं।
- तत्पश्चात् ग्रीवा को घड़ी की विपरीत दिशा में घुमाएं
- श्वास को अंदर लेते हुए ग्रीवा को पीछे ले जाएं और श्वास को छोड़ते समय वापस ले आएं।
- यह एक चक्र पूर्ण हुआ। इस विधि को और दो बार दोहराएं।
ध्यातव्य(सावधानियां):
- ग्रीवा को जितना संभव हो, उतना ही घुमाएं अधिक नही खींचना चाहिए ।
- कंधों को शिथिल और स्थिर रखना चाहिए।
- ग्रीवा के आसपास खिंचाव महसूस करें और ग्रीवा के जोड़ों व मांसपेशियों को शिथिल रखें।
- इसका अभ्यास कुर्सी पर बैठकर भी किया जा सकता है।
- जिन लोगों की ग्रीवा में पीड़ा हो, वे यह अभ्यास धीरे-धीरे करें, खासकर वे सिर को उतना ही पीछे ले जाएं, जितना आरामदायक हो।
अधिक उम्र के लोगों और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस तथा उच्च रक्तचाप की व्याधि से ग्रसित व्यक्ति को इस अभ्यास से बचना चाहिए।
(ख )स्कंध संचालन :-
स्थिति: समस्थिति (सजग स्थिति)
चरण i : स्कंध खिंचाव
अभ्यास विधि
- पैर परस्पर मिले हुए हों, पैर से सिर तक का हिस्सा सरलता से सीधा रखतेहुए खड़े रहें ।
- बगल से अपनी दोनों भुजाओं को सिर से ऊपर उठाएं, हथेलियां उर्ध्व दिशा में हों। इसी क्रिया को. नीचे की तरफ दोहराएं।
- जब हाथ को सिर से ऊपर ले जाएं। तो ध्यान रखें कि वे सिर से स्पर्श न करें, इसी तरह जब हाथों को नीचे लेकर आएं
तो जांधों को वे स्पर्श न करें। - उंगलियों को मिलाते हुए दोनों हथेलियों को पूरी तरह खोल लें।
चरण ii: स्कंध चक्र (स्कंध चालन)
- सीधे खड़े हो जाएं।
- बायें हाथ की उंगलियों को बायें कंधे पर रखें और उसी तरह दायें हाथ की उंगलियों को दायें कंधे पर रखें।
- दोनों कोहनियों को पूरी तरह चक्राकार घुमाएं।
- आगे की ओर कोहनियों को घुमाते हुए।
- वक्ष स्थल के सामने स्पर्श कराने की कोशिश करें और जब कोहनियों को विपरीत क्रम में घुमाएं तो उन्हें कानों से स्पर्श कराएं।
- विपरीत दिशा में भुजाओं को खींचकर घुमाएं और कोशिश करें कि इस दौरान भुजाएं शरीर को स्पर्श करें।
- इस क्रिया को दायें से बायें (घड़ी की सुई की दिशा में) पांच बार दोहराएं। इसी क्रिया को बायें से दायें (घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में) पांच बार दोहराएं।
लाभ :
- इस क्रिया के अभ्यास से हड्डियां, मांसपेशियां और स्कंध क्षेत्र की तंत्रिकाएं स्वस्थ रहती हैं।
- यह योगासन गर्दन की रीढ़ की हड्डी स्पान्डिलाइट्स) बीमारी को दूर करता रुकावटों से छुटकारा दिलाता है।
योग का अर्थ, परिभाषा उद्देश्य एवं महत्व
(ग)कटि चालन (कटिशक्ति विकासक)
स्थिति : समस्थिति (सजग स्थिति)
अभ्यास विधि
- दोनों पैरों के बीच 2 से 3 फीट की दूरी रखें।
- दोनों भुजाओं को वक्ष तक उठाएं।
- इस समय दोनों हथेलियां समानान्तर स्थिति में एक-दूसरे के आमने-सामने हों।
- श्वास को बाहर छोड़ते समय शरीर को बाई ओर घुमाएं, जिससे कि दाई हथेली बाएं कंधे को छुए। श्वास को अंदर लेते हुए पूर्व स्थिति में आना
चाहिए। - श्वास को बाहर छोड़ते समय शरीर को दाईं ओर घुमाएं, जिससे कि बाई हथेली दाएं कंधे को छुए। श्वास को अंदर लेते हुए पूर्व स्थिति में वापस आना चाहिए।
- इस तरह एक चक्र पूर्ण हुआ इस विधि को और दो बार दोहराए । अभ्यास के बाद समस्थिति में शिथिल हो जाएं।
ध्यातव्य (सावधानियाँ ):
- सामान्य गति से श्वास लेते हुए इस आसन का अभ्यास धीरे-धीरे करें।
- हृदय रोगियों को यह अभ्यास सावधानी पूर्वक करना चाहिए।
- गंभीर पीठ दर्द तथा रीढ़ और डिस्क व्याधि से ग्रसित व्यक्ति व उदर- शैल्य क्रिया (ऑपरेशन) कराने वालों को यह आसन नहीं करना चाहिए। मासिक धर्म के समय इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
(घ) घुटना संचालन
शरीरिक स्थिति :समस्थिति (सजग स्थिति)
अभ्यास विधि
- श्वास को शरीर के अंदर ग्रहण करते हुए अपनी भुजाओं को कंधे के स्तर तक लाएं तथा हथेलियो को नीचे की ओर रखें।
- श्वास छोड़ते हुए घुटनों को मोडें और अपने शरीर को बैठने की स्थिति में ले आएं।
- अभ्यास की अंतिम स्थिति में दोनों भुजाएं और जांघें जमीन की तरफ समानांतर स्थिति में होनी चाहिए।
- श्वास को शरीर के अंदर ग्रहण करते हुए शरीर को सीधा रखें।
- हाथों को वापस नीचे लाते समय श्वास को शरीर के बाहर छोड़ना चाहिए।
- इस विधि को दो बार दोहराएं।
ध्यातव्य (सावधानियाँ ):
- घुटनों और कूल्हों के जोड़ों को सुदृढ़ बनाएं।
- आर्थराइटिस का गंभीर दर्द होने पर इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
3. योगासन
(क). खड़े होकर किए जाने वाले आसन
ताड़ासन (ताड़वृक्ष की स्थिति में)
ताड़ शब्द का अर्थ है पहाड़ ताड़ या खजूर का पेड़ इस आसन के अभ्यास से स्थायित्व व शारीरिक दृढ़ता प्राप्त होती है। यह खड़े होकर किए जाने वाले सभी आसनों का आधार है।
अभ्यास विधि
- सर्वप्रथम पैरों के बल खड़े हो जाएं तथा दोनों पैरों के बीच दो इंच की दूरी रखें।
- दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में एक-दूसरे से मिलाएं तथा हथेलियों को बाहर की ओर रखते हुए श्वास को शरीर के अंदर ग्रहण करें। भुजाओं को ऊपर की ओर करके कंधों को एक सीध में ले आएं।
- पैर की एड़ियों को पृथ्वी से ऊपर उठाएं और पैर की अंगुलियों पर अपना संतुलन बनाएं। इस स्थिति में 10 से 15 सेकेंड तक रुके रहें।
- श्वास को शरीर से बाहर छोड़ते हुए एड़ियों को वापस जमीन पर रखें।
- अब हाथ की अंगुलियों को अलग-अलग करते हुए भुजाओं को शरीर के समानांतर लाएं फिर इसके बाद प्रारंभिक स्थिति में वापस आ जाएं।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से शरीर सुदृढ़ होता है। यह मेरुदण्ड से सम्बन्धित नाड़ियों के रक्त संचय को ठीक करने में भी सहायक है।
- यह आसन एक निश्चित उम्र तक लंबाई बढ़ाने में सहायक है।
सावधानियां
व्यक्तियों को यह आसन नहीं करना चाहिए जिन्हें हृदय संबंधी व वैरिकोज वेन्स (Veins) संबंधी समस्याएं हैं। चक्कर आने की स्थिति में
अंगुलियों पर ऊपर उठने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
वृक्षासन (वृक्ष की स्थिति में)
वृक्ष शब्द का अर्थ है पेड़। इस आसन के अभ्यास की अंतिम अवस्था में शारीरिक स्थिति एक पेड़ के आकार की बनती है। इसलिए इस आसन को यह नाम दिया गया है।
अभ्यास विधि
- वृक्षासन का अभ्यास करते समय सर्वप्रथम दोनों पैरों को एक-दूसरे से 2 इंच की दूरी पर रखकर खड़े हो जाएं।
- आखों के सामने किसी बिंदु पर ध्यान केंद्रित करें।
- श्वास को शरीर के बाहर छोड़ते हुए दाएं पैर को मोड़कर उसके पंजे को बाएं पैर की अंदरुनी जांघ पर रखें।
- अभ्यास करते समय ध्यान रखें कि एड़ी मूलाधार (पेरिनियम) से मिली होनी चाहिए।
- श्वास को शरीर के अंदर लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर ले जाकर दोनों हथेलियों को जोड़ें।
- इस स्थिति में 10 से 30 सेकंड तक रहें। इस दौरान सामान्य रूप से श्वास लेते रहें।
- श्वास को शरीर के बाहर छोड़ते हुए हाथों एवं दाएं पैर को मूल अवस्था में वापस लेकर आएं।
- शरीर को शिथिल करते हुए इस आसन का अभ्यास पुनः बायें पैर से करें।
लाभ
- यह आसन तंत्रिका से सम्बन्धित स्नायुओं के समन्वय को बेहतर बनाता है,शरीर को संतुलित बनाता है और सहनशीलता एवं जागरुकता बढ़ाता है।
- पैरों की मांसपेशियों को गठीला बनाता है और लिगामेंट्स को भी सृदृढ़ करता है।
सावधानियाँ
कृपया आर्थराइटिस, चक्कर आने और मोटापा होने पर इस आसन का अभ्यास न करें।
पादहस्तासन
पादहस्तासन का अर्थ है पाद अर्थात पैर, हस्त अर्थात हाथ। इस आसन के अभ्यास में हथेलियों को पैरों की तरफ नीचे ले जाया जाता है। इस आसन के अभ्यास को उत्तानासन भी कहा जाता है।
अभ्यास विधि
- पादहस्तासन का अभ्यास करते समय सर्वप्रथम दोनों पैरों के बीच 2 इंच की दूरी रखकर सीधा खड़ा हो जाएं।
- धीरे-धीरे श्वास को शरीर के अंदर खींचते हुए हाथों को ऊपर की ओर ले जाना चाहिए।
- कटिभाग से शरीर को ऊपर की ओर ले जाएं।
- श्वास को शरीर के बाहर छोड़ते हुए सामने की ओर झुकें, जब तक कि शरीर पृथ्वी के समानांतर न आ जाए।
- श्वास को शरीर के बाहर छोड़ते हुए इस प्रकार झुकते रहना चाहिए कि हथेलियां पृथ्वी का स्पर्श करने लगे।
- इस शारीरिक स्थिति में 10-30 सेकंड तक रुकें। इस आसन का अभ्यास करते समय अपनी क्षमता के अनुसार झुकना चाहिए।
- श्वास को शरीर के अंदर खींचते हुए धीरे-धीरे हाथों को सिर के ऊपर तक खींचकर रखना चाहिए।
- श्वास को शरीर के बाहर छोड़ते हुए धीरे-धीरे विपरीत क्रम से प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाएं।
- ताड़ासन में शिथिल अवस्था में रहना चाहिए, और कुछ समय तक आराम करना चाहिए।
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FAQs
प्र.योग क्या है ?
उत्तर-सार रूप में कहें तो योग आध्यात्मिक अनुशासन एवं अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ज्ञान है
प्र.योग का इतिहास क्या है ?
उत्तर-27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ( यू एन जी ए) के 69वें सत्र को संबोधित करते हुए भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का आह्वान किया
प्र.योग का संक्षिप्त इतिहास एवं विकास ?
उत्तर- योग विद्या का उद्भव हजारों वर्ष प्रचीन है। श्रुति परंपरा के अनुसार भगवान शिव योग विद्या के प्रथम आदि गुरु, योगी या आदियोगी हैं। हजारों-हजार वर्ष पूर्व हिमालय में कांति सरोवर झील के किनारे आदियोगी ने योग का गूढ़ ज्ञान पौराणिक सप्त ऋषियों को दिया था