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निपुण भारत को और निपुण बनाने के लिए बाल वाटिका के तहत बालगीत और मनोरंजक कहानियां

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निपुण भारत को और निपुण बनाने के लिए बाल वाटिका के तहत बालगीत और मनोरंजक कहानियां

चित्रकार सुनसान जगह में बना रहा था चित्र

चित्रकार सुनसान जगह में बना रहा था चित्र

इतने में ही वहां आ गया यमराज का मित्र

उसे देखकर चित्रकार के तुरंत उड़ गए होश

नदी पहाड़ पेड़ पत्तों का न रह गया कुछ होश

फिर उसको कुछ हिम्मत आई देख उसे चुपचाप

बोला सुंदर चित्र बना दो बैठ जाइए आप

अकड़ू अकड़ू बैठ गया वह सारे अंग बटोर

बड़े ध्यान से लगा देखने चित्रकार की ओर

चित्रकार ने कहा हो गया आगे का तैयार

अब मुँह आप उधर तो करिए जंगल के सरकार

बैठ गया वह पीठ फिराकर चित्रकार की ओर

चित्रकार चुपके से खिसका जैसे कोई चोर

बहुत देर तक आंख मूंद कर पीठ घुमा कर बैठा शेर

बैठे-बैठे लगा सोचने इधर हुई क्यों देर

झील के किनारे नाव लगी थी एक रखा था बांस

चित्रकार ने नाव पकड़ कर ले ली जी भरकर सांस

जल्दी-जल्दी नाव चला कर निकल गया हुआ दूर

इधर शेर था धोखा खाकर झुनझुनाहट में चूर

शेर बहुत खिसिया कर बोला नाव जरा ले रोक

कागज और कलम तो ले जा रे कायर डरपोक

चित्रकार ने कहा तुरंत  रखिए अपने पास

चित्रकला का आप कीजिए जंगल में अभ्यास

 

शिक्षक का महत्व

 

माताएं देती नवजीवन ,पिता सुरक्षा करते हैं

लेकिन सच्ची मानवता शिक्षक जीवन में भरते हैं

शिक्षक ईश्वर से बढ़कर हैं यह कबीर बतलाते हैं

क्योंकि शिक्षक ही बच्चों को ईश्वर तक पहुंचाते हैं

जीवन में कुछ पाना है तो शिक्षक का सम्मान करो

शीश झुका कर श्रद्धा से तुम सभी उन्हें प्रणाम करो

नन्हा पौधा

एक बीज था गया बहुत ही गहराई में बोया

उसी बीच के अंतर में था नन्हा पौधा सोया

उस पौधे को मंद पवन ने जाकर पास जगाया

नन्ही नन्ही बूंदों ने फिर उस पर जल बरसाया

सूरज बोला प्यारे पौधे निंद्रा दूर भगाओ

अलसाई आंखें खोलो तुम उठकर बाहर आओ

आंख खोलकर नन्हे पौधे ने तब ली अंगड़ाई ।

एक अनोखी नई शक्ति सी उसके मन में आई

नींद छोड़कर आलस्य त्यागकर पौधा बाहर आया

बाहर का संसार बड़ा ही अद्भुत उसने पाया

 

अंडा सा आकार

 

सबसे पहले मेरे घर का अंडे जैसा था आकार

तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार

फिर मेरा घर बना घोसला सूखे तिनको से तैयार

तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार

फिर मैं निकल गई शाखों पर हरी भरी थी जो सुकुमार

तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार

आखिर जब मैं आसमान में उड़ी दूर तक पंख पसार

तभी समझ में मेरी आया बहुत बड़ा है संसार

 

 

भोजराज की कहानी

 

भोजराज भोजन के दास रहते थे मंदिर के पास

हुआ पेट था जैसा मटका चलने में गिरने का खटका

एक बार की सुनो कहानी भोजराज ने की नादानी

बड़े भोज का न्योता पाया पकवानों को जमकर खाया

लड्डू पेड़ा जो भी पाया छट उनका किया सफाया

तब तो उनका जी मिचलाया विकट दर्द ने उन्हें सताया

हालत बिगड़ी डॉक्टर आये  दवा  पिलाई चूर्ण फकाएँ

झटपट वह घर को आए

तब से मन में लिया ठान

कभी ना ज्यादा खाऊंगा

बड़ी तोंद पिचकाउंगा

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