चंद्र ग्रहण क्या है?

चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। यह घटना केवल पूर्णिमा की रात को होती है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में होते हैं। पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है, जिससे चंद्रमा की सतह धुंधली या लाल दिखाई देती है, जिसे “ब्लड मून” भी कहा जाता है।
वैज्ञानिक कारणः चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं और पृथ्वी, सूर्य की रोशनी को चंद्रमा तक पहुंचने से रोक देती है।
पृथ्वी की छायाः पृथ्वी दो प्रकार की छाया बनाती है: एक पूरी तरह से अंधेरा हिस्सा (अम्ब्रा) और एक आंशिक हिस्सा (पेनुम्ब्रा)।
रंग का कारणः पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य की रोशनी को बिखेर देता है; नीली और हरी किरणें बिखर जाती हैं, जबकि लाल किरणें मुड़कर चंद्रमा तक पहुंचती हैं, जिससे वह लाल दिखाई देता है।
दिखाई देने का समयः यह घटना साल में दो से चार बार होती है और इसे केवल पूर्णिमा की रात को देखा जा सकता है।
देखने की विधिः चंद्र ग्रहण को नंगी आँखों से देखा जा सकता है, और इसके लिए किसी विशेष सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती है।
चंद्र ग्रहण तीन प्रकार का होता है ?
पूर्ण चंद्र ग्रहण :

पूर्ण चंद्र ग्रहण वह खगोलीय घटना है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और अपनी छाया से चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेती है इस दौरान सूर्य की सीधी रोशनी चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाती है, जिससे चंद्रमा हल्का लाल या नारंगी रंग का दिखाई देता है, जिसे अक्सर ‘ब्लड मून’ भी कहा जाता है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण की मुख्य बातें
सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की सीध में यह घटना तभी होती है जब तीनों खगोलीय पिंड एक सीध में होते हैं।
पृथ्वी की छायाः पृथ्वी सूर्य की रोशनी को रोकती है और चंद्रमा पर उसकी छाया पड़ती है।
लाल रंग का दिखनाः पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरने वाली सूर्य की रोशनी का कुछ हिस्सा चंद्रमा की सतह तक पहुँचता है। पृथ्वी का वायुमंडल नीली और हरी रोशनी को बिखेर देता है, जबकि लाल और नारंगी रंग की रोशनी चंद्रमा तक पहुँच पाती है, जिससे वह लाल दिखाई देता है।
पूर्णिमा के दिन होता है? पूर्ण चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही होता है।
आंशिक चंद्र ग्रहण:

आंशिक चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में नहीं होते हैं, जिसके
कारण चंद्रमा का केवल एक हिस्सा पृथ्वी की छाया के गहरे हिस्से (अम्ब्रा) में आता है। इससे चंद्रमा का केवल एक भाग काला पड़ जाता है जबकि दूसरा भाग प्रकाशित रहता है।
यह कैसे होता है? आंशिक चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया के गहरे हिस्से (अम्ब्रा) के केवल एक भाग को पार करता है।
चंद्रमा पर प्रभावः चंद्रमा की सतह का केवल एक हिस्सा पृथ्वी की छाया से ढकता है, जिससे उसका केवल एक भाग ही अँधेरा होता है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण से अंतरः पूर्ण चंद्र ग्रहण में पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है, जबकि आंशिक ग्रहण में केवल एक हिस्सा ही आता है।
उपच्छाया ग्रहणः जब चंद्रमा पृथ्वी की बाहरी, हल्की छाया (पेनम्ब्रा) से गुजरता है, तो उसे उपच्छाया ग्रहण कहते हैं।
उपछाया चंद्र ग्रहण:

उपछाया चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी की हल्की, बाहरी छाया (उपछाया) से गुजरता है, जिससे यह पूरी तरह से काला होने के बजाय हल्का धुंधला या मटमैला दिखाई देता है। यह पूर्ण या आंशिक चंद्र ग्रहण से अलग होता है, जिसमें चंद्रमा पृथ्वी की गहरी छाया (पूर्ण छाया) से होकर गुजरता है और काला दिखाई देता है।
उपछाया चंद्र ग्रहण के बारे में मुख्य बातें
क्या होता है: चंद्रमा का सिर्फ बाहरी, धुंधला हिस्सा पृथ्वी की छाया में होता है, इसलिए चंद्रमा काला नहीं होता, बल्कि हल्का धुंधला हो जाता है।
अंतरः
पूर्ण या आंशिक चंद्र ग्रहणः पृथ्वी की गहरी छाया (अम्ब्रा) चंद्रमा को ढकती है, जिससे वह काला या लाल (ब्लड मून) दिखाई देता है।
उपछाया चंद्र ग्रहणः चंद्रमा पृथ्वी की हल्की छाया (पेनम्ब्रा) से गुजरता है, जिससे केवल उसकी चमक हल्की हो जाती है।
पहचानः इसे नंगी आंखों से पहचानना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि यह सामान्य पूर्णिमा के चांद जैसा ही दिखता है।
चंद्र ग्रहण और लालिमा की प्रक्रिया:
सही संरेखणः चंद्रमा लाल केवल पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है। ऐसा तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के ठीक बीच में होती है।
पृथ्वी की छायाः पृथ्वी की छाया (उम्ब्रा) चंद्रमा की सतह पर पड़ती है, जिससे सीधी धूप रुक जाती है।
वायुमंडल का प्रभावः पृथ्वी का वायुमंडल एक फिल्टर की तरह काम करता है। यह सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा की ओर मोड़ने के लिए प्रकाश के रंगों को अपवर्तित (refract) करता है।
नीली रोशनी का बिखरावः नीली और बैंगनी रंग की रोशनी वायुमंडल में बिखर जाती है, ठीक वैसे ही जैसे दिन के समय आकाश नीला दिखता है।
लाल रोशनी का गमनः लाल और नारंगी रंग की रोशनी (जिनकी तरंग दैर्ध्य अधिक होती है) बिखरती नहीं है और चंद्रमा की सतह तक पहुँच पाती है।
अंतिम प्रभावः यह लाल और नारंगी प्रकाश चंद्रमा की सतह से परावर्तित होकर हमारी आँखों तक पहुँचता है, जिसके कारण चंद्रमा हमें लाल, या “ब्लड मून” दिखाई देता है।
लालिमा की तीव्रता
चंद्रमा के रंग की लालिमा पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद धूल और बादलों की मात्रा पर भी निर्भर करती है। वायुमंडल में जितने अधिक कण होंगे, लाल रंग उतना ही गहरा होगा।
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