बुध ग्रह क्या है?

बुध, सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य का सबसे निकटतम ग्रह है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। [12] गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमण्डल चूँकि करीब-करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100K (-173 °C; -280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (-93 °C; -136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब 1/30), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह अपसौर पर उपसौर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है।
बुध ग्रह सौरमंडल के चार स्थलीय ग्रहों में से एक है, तथा यह पृथ्वी के समान एक चट्टानी पिंड है। यह 2,439.7 किमी की विषुववृत्तिय त्रिज्या वाला सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। बुध ग्रह सौरमंडल के बड़े उपग्रहों गेनिमेड और टाइटन से भी छोटा है, हालांकि यह उनसे भारी है। बुध तकरीबन 70% धातु व 30% सिलिकेट पदार्थ का बना है। बुध का 5.427 ग्राम/सेमी का घनत्व सौरमंडल में उच्चतम के दूसरे क्रम पर है, यह पृथ्वी के 5.515 ग्राम/सेमी के घनत्व से मात्र थोडा सा कम है। यदि गुरुत्वाकर्षण संपीड़न के प्रभाव को गुणनखंडो में बांट दिया जाए, तब 5.3 ग्राम/सेमी 3बनाम पृथ्वी के 4.4 ग्राम/सेमी के असंकुचित घनत्व के साथ, बुध जिस पदार्थ से बना है वह सघनतम होगा।
बुध का घनत्व इसके अंदरुनी गठन के विवरण के अनुमान के लिए प्रयुक्त हो सकता है। पृथ्वी का उच्च घनत्व उसके प्रबल गुरुत्वाकर्षण संपीड़न के कारण काफी है, विशेष रूप से कोर का, इसके विपरित बुध बहुत छोटा है और उसके भीतरी क्षेत्र उतने संकुचित नहीं हुए हैं। इसलिए, इस तरह के किसी उच्च घनत्व के लिए, इसका कोर बड़ा और लौह से समृद्ध अवश्य होना चहिए
बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है।
नामकरण:
ग्रहीय प्रणाली नामकरण के कार्य समूह ने बुध पर पांच घाटियों के लिए नए नामों को मंजूरी दी है: एंगकोर घाटी (Angkor Vallis), कैहोकीया घाटी (Cahokia Vallis), कैरल घाटी (Caral Vallis), पाएस्टम घाटी (Paestum Vallis), टिमगेड घाटी (Timgad Vallis)
इतिहास:
रोमन मिथको के अनुसार बुध व्यापार, यात्रा और चोर्यकर्म का देवता, युनानी देवता हर्मीश का रोमन रूप, देवताओ का संदेशवाहक देवता है। इसे संदेशवाहक देवता का नाम इस कारण मिला क्योंकि यह ग्रह आकाश में काफी तेजी से गमन करता है, लगभग 88 दिन में अपना एक परिक्रमण पूरा कर लेता है।
बुध को ईसा से ३ सहस्त्राब्दि पहले सूमेरियन काल से जाना जाता रहा है। इसे कभी सूर्योदय का तारा, कभी सूर्यास्त का तारा कहा जाता रहा है। ग्रीक खगोल विज्ञानियों को ज्ञात था कि यह दो नाम एक ही ग्रह के हैं। हेराक्लाइटेस यहां तक मानता था कि बुध और शुक्र पृथ्वी की नही, सूर्य की परिक्रमा करते है। बुध पृथ्वी की तुलना में सूर्य के समीप है इसलिये पृथ्वी से उसकी चन्द्रमा की तरह कलाये दिखायी देती है। गैलीलीयो की दूरबीन छोटी थी जिससे वे बुध की कलाये देख नहीं पाये लेकिन उन्होने शुक्र की कलायें देखी थी।
चुंबकीय क्षेत्र:

मुख्य लेखः बुध का चुंबकीय क्षेत्र
अपने छोटे आकार व 59-दिवसीय-लंबे धीमे घूर्णन के बावजुद बुध का एक उल्लेखनीय और वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र है। मेरिनर 10 द्वारा लिए गए मापनों के अनुसार यह पृथ्वी की तुलना में लगभग 1.1% सर्वशक्तिशाली है। इस चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति बुध के विषुववृत्त पर करीब 300 nT है। [24] [25] पृथ्वी की तरह बुध का भी चुंबकीय क्षेत्र दो ध्रुवीय है। पृथ्वी के उलट, बुध के ध्रुव ग्रह के घूर्णी अक्ष के करीब-करीब सीध में है।अंतरिक्ष यान मेरिनर-10 व मेसेंजर दोनों से मिले मापनों ने दर्शाया है कि चुंबकीय क्षेत्र का आकार व शक्ति स्थायी है
ऐसा लगता है कि यह चुंबकीय क्षेत्र एक डाइनेमो प्रभाव के माध्यम द्वारा उत्पन्न हुआ है। इस लिहाज से यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के समान है। यह डाइनेमो प्रभाव ग्रह के लौह-बहुल तरल कोर के परिसंचरण का नतीजा रहा होगा। विशेष रूप से ग्रह की उच्च कक्षीय विकेंद्रता द्वारा उप्तन्न शक्तिशाली ज्वारीय प्रभाव ने कोर को तरल अवस्था में रखा होगा जो कि डाइनेमो प्रभाव के लिए आवश्यक है।
बुध का चुंबकीय क्षेत्र ग्रह के आसपास की सौर वायु को मोड़ने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली है, जो एक मेग्नेटोस्फेयर की रचना करता है। इस ग्रह का मेग्नेटोस्फेयर, यद्यपि पृथ्वी के भीतर समा जाने जितना छोटा है, पर सौर वायु प्लाज्मा को फांसने के लिए पर्याप्त मजबूत है। यह ग्रह की सतह के अंतरिक्ष अपक्षय के लिए योगदान देता है। मेरिनर 10 अंतरिक्ष यान द्वारा किये निरीक्षणों ने ग्रह के रात्रि-पक्ष के मेग्नेटोस्फेयर में इस निम्न ऊर्जा प्लाज्मा का पता लगाया। ऊर्जावान कणों के प्रस्फुटन को ग्रह के चुम्बकीय दूम में पाया गया, जो ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर की एक गतिशील गुणवत्ता को इंगित करता है।
6 अक्टूबर 2008 को ग्रह के अपने दूसरे फ्लाईबाई के दौरान मेसेंजर यान ने पता लगाया कि बुध का चुंबकीय क्षेत्र अत्यंत “रिसाव” वाला हो सकता है। इस अंतरिक्ष यान ने चुंबकीय “बवंडर” का सामना किया चुंबकीय क्षेत्र के ऐंठे हुए बंडल जो ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को अंतरग्रहीय अंतरिक्ष से जोड़ता है – जो कि 800 किमी या ग्रह की त्रिज्या के एक तिहाई तक चौड़े थे। चुंबकीय क्षेत्र सौर वायु द्वारा बुध के चुंबकीय क्षेत्र से संपर्क के लिए जब ढोया जाता, ये “बवंडर” बनते हैं ?
ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के अंतरग्रहीय अंतरिक्ष से जुड़ने की प्रक्रिया जो कि ब्रह्मांड में एक सामान्य प्रक्रिया है चुम्बकीय पुनर्मिलन यानि कहलाती है। यह धरती के चुम्बकीय क्षेत्र में भी उत्पन्न होती है जहाँ ये चुम्बकीय बवंडर के हद तक बन जाती है। मेसेंज़र उपग्रह की गणनाओं के अनुसार बुध ग्रह पर चुम्बकीय पुनर्मिलन की प्रक्रिया की रफ्तार लगभग १० गुना ज्यादा है। बुध ग्रह की सूर्य से अधिक निकटता, मेसेंज़र द्वारा मापे गये उसके चुम्बकीय पुनर्मिलन की गति के सिर्फ तिहाई हिस्से का कारक थी
परिक्रमा, घूर्णन एवं देशांतर:

बुध की कक्षा सभी ग्रहों में सर्वाधिक चपटी है। इसकी कक्षीय विकेंद्रता 0.21 है। सूर्य से इसकी दूरी 46,000,000 से लेकर 70,000,000 किमी (29,000,000 से 43,000,000 मील) तक विचरित है। एक पूर्ण परिक्रमा के लिए इसे 87.969 पृथ्वी दिवस लगते हैं। दायें बाजू का रेखाचित्र विकेंद्रता के असर को दिखाता है, जिसमें बुध की कक्षा एक वृत्ताकार कक्षा के ऊपर मढ़ी दिख रही है जबकि उनकी अर्द्ध प्रमुख धुरी बराबर है।
आधुनिक खगोल विज्ञान:
अभी तक दो अंतरिक्ष यान मैरीनर १० तथा मैसेन्जर बुध ग्रह जा चुके है। मैरीनर- १० सन १९७४ तथा १९७५ के मध्य तीन बार इस ग्रह की यात्रा कर चुका है। बुध ग्रह की सतह के ४५% हिस्से का नक्शा बनाया जा चुका है। (सूर्य के काफी समीप होने की वजह से होने वाले अत्यधिक प्रकाश व चकाचौंध के कारण हब्ब्ल दूरबीन उसके बाकी क्षेत्र का नक्शा नहीं बना पाती है।) मेसेन्जर यान २००४ में नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। इसने २०११ में बुध ग्रह की परिक्रमा की। इसके पहले जनवरी २००८ में इस यान ने मैरीनर १० द्वारा न देखे गये क्षेत्र की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरे भेंजी थी।
बुध की कक्षा काफी ज्यादा विकेन्द्रीत (eccentric) है, इसकी सूर्य से दूरी ४६,०००,००० किमी (perihelion) से ७०,०००,००० किमी (aphelion) तक रहती है। जब बुध सूर्य के नजदिक होता है तब उसकी गति काफी धीमी होती है। १९ वी शताब्दि में खगोलशास्त्रीयों ने बुध की कक्षा का सावधानी से निरिक्षण किया था लेकिन न्युटन के नियमों के आधार पर वे बुध की कक्षा को समझ नहीं पा रहे थे। बुध की कक्षा न्युटन के नियमो का पालन नहीं करती है। निरिक्षित कक्षा और गणना की गयी कक्षा में अंतर छोटा था लेकिन दशको तक परेशान करनेवाला था। पहले यह सोचा गया कि बुध की कक्षा के अंदर एक और ग्रह (वल्कन) हो सकता है जो बुध की कक्षा को प्रभवित कर रहा है। काफी निरीक्षण के बाद भी ऐसा कोई ग्रह नहीं पाया गया। इस रहस्य का हल काफी समय बाद आइंस्टीन के साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत (General Theory of Relativity) ने दिया। बुध की कक्षा की सही गणना इस सिद्धांत के स्वीकरण की ओर पहला कदम था।
वातावरण:
बुध पर एक हल्का वातावरण है जो मुख्यतः सौर वायु से आये परमाणुओं से बना है। बुध बहुत गर्म है जिससे ये परमाणु उड़कर अंतरिक्ष में चले जाते है। ये पृथ्वी और शुक्र के विपरीत है जिसका वातावरण स्थायी है, बुध का वातावरण नवीन होते रहता है।
जल की उपस्थिति:
मैरीनर से प्राप्त आंकड़े बताते है कि बुध पर कुछ ज्वालामुखी गतिविधियां है लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कुछ और आंकड़े चाहिये। आश्चर्यजनक रूप से बुध के उत्तरी ध्रुवों के क्रेटरों में जलीय बर्फ के प्रमाण मिले है। इसके प्रमाण रडार से भी मिले थे
खगोलिय निरीक्षण:
बुध को सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से ठीक पहले नग्न आंखो से देखा जा सकता है। सूर्य के बेहद निकट होने के कारण इसे सीधे देखना मुश्किल होता है।
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