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Teachers are leaving their jobs – a harsh reality: शिक्षक अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं — एक कड़वी सच्चाई

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Teachers are leaving their jobs – a harsh reality: शिक्षक अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं — एक कड़वी सच्चाई

Teachers are leaving their jobs

♡•☆𝘳ℯᵃ₫Եⲏĩ𝐬♡•☆👋: The police recruitment exam will be held at 430 centres across the state; those with incorrect photographs will have to bring two: पुलिस भर्ती परीक्षा प्रदेश के 430 केन्द्रों पर होगी, गड़बड़ फोटो लगाने वालों को दो फोटो लानी होंगी

Teachers are leaving their jobs:

शिक्षक अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं — एक कड़वी सच्चाई

“शिक्षक जा रहा है” — यह लेख एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक कृष्ण कुमार द्वारा लिखा गया है, जो द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था।

इस लेख का सारांश इस प्रकार है —

आज देशभर के स्कूलों में एक शांत लेकिन गहराई तक परेशान करने वाला बदलाव हो रहा है —

वह है शिक्षकों के मन में बढ़ती थकान, बेबसी और मोहभंग।

शिक्षक अपनी नौकरियां छोड़ रहे हैं — कुछ चुपचाप, और कुछ भीतर ही भीतर टूटकर।

वहीं, नई पीढ़ी अब शिक्षक बनना ही नहीं चाहती।

ऐसा क्यों हो रहा है?

🔹 1. शिक्षकों के चारों ओर फैला नौकरशाही का जाल

📍 पढ़ाने के बजाय शिक्षक अब रिपोर्ट भरने, फॉर्म भरने और डाटा अपलोड करने में उलझे रहते हैं।

📍 “फोटो भेजो”, “प्रमाण दो”, “रिपोर्ट अपलोड करो” — यही उनका रोज़मर्रा का काम बन गया है।

📍 अब कक्षा में उनकी उपस्थिति घट रही है, जबकि स्क्रीन के सामने बिताया समय बढ़ रहा है।

🔹 2. तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता:

📍 हर विषय में डिजिटल टूल, ऐप्स और स्मार्ट बोर्ड थोपे जा रहे हैं।

📍 विषय, बच्चे की उम्र या संदर्भ को बिना समझे आदेश दिए जाते हैं — “तकनीक का उपयोग करो।”

📍 शिक्षण से मानवीय स्पर्श गायब हो गया है; शिक्षा अब मशीन-केंद्रित बन गई है।

🔹 3. शिक्षक बन गए हैं ‘इवेंट मैनेजर’: Teachers are leaving their jobs

📍 हर दिन कोई न कोई दिवस मनाना होता है — योग दिवस, मातृभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस आदि।

📍 अब शैक्षणिक गुणवत्ता नहीं, बल्कि कार्यक्रमों की संख्या और दिखावा सफलता का पैमाना बन गया है।

📍 प्रधानाचार्य और शिक्षक दोनों इस प्रदर्शन संस्कृति के जाल में फंसे हुए हैं।

🔹 4. ग्रामीण शिक्षकों की दयनीय स्थिति: Teachers are leaving their jobs

📍 दो-तीन शिक्षक सैकड़ों छात्रों को पढ़ाने के लिए मजबूर हैं।

📍 पढ़ाने के साथ-साथ उन्हें मिड-डे मील, छात्रवृत्ति, यूनिफॉर्म, साइकिल, सरकारी रिपोर्ट्स सब संभालनी पड़ती हैं।

📍 अब वास्तविक शिक्षा से अधिक महत्व “डाटा भेजने” को दिया जा रहा है।

🔹 5. मानसिक तनाव और आत्म-सम्मान की हानि: Teachers are leaving their jobs

📍 लगातार ऊपर से निगरानी ने शिक्षकों का आत्मविश्वास तोड़ दिया है।

📍 हर काम का सबूत मांगा जाता है — विश्वास समाप्त हो गया है।

📍 छात्रों के तनाव और व्यवहारिक समस्याओं से जूझते-जूझते शिक्षक भावनात्मक रूप से थक चुके हैं।

📍 माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएं और हर चीज़ का प्रमाण देने का दबाव।

Teachers are leaving their jobs

🔹 6. शिक्षा का असली उद्देश्य खो गया है: Teachers are leaving their jobs

📍 शिक्षकों पर सिलेबस पूरा करने का भारी दबाव है।

📍 विषयों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, चाहे उसकी जरूरत हो या नहीं।

📍 अब स्कूल “मानव निर्माण की जगह” नहीं रह गए हैं।

📍 आज की शिक्षा प्रणाली प्रदर्शन दिखाने की परियोजना बनकर रह गई है।

📍 शिक्षक-छात्र का भावनात्मक रिश्ता, जो शिक्षा का केंद्र था, अब डाटा और डेडलाइन के नीचे दब गया है।

📍 अब छात्र शिक्षक को सेवा प्रदाता समझने लगे हैं — सम्मान खो गया है।

🔹 अब विचार करने का समय है…: Teachers are leaving their jobs

शिक्षा का असली केंद्र फिर से बच्चे और शिक्षक होने चाहिए,

ना कि डाटा और रिपोर्ट।

यदि शिक्षकों को स्वतंत्रता, सम्मान और विश्वास नहीं दिया गया,

तो कल की शिक्षा निर्जीव हो जाएगी।

📚 हमें एक बार फिर शिक्षकों पर विश्वास करना होगा —

क्योंकि अगर शिक्षक चला गया,

तो स्कूल तो खड़ा रहेगा,

पर शिक्षा नहीं बचेगी।

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